झारखंड में अंतिम पड़ाव पर है नक्सलवाद, गृह मंत्रालय के मार्गदर्शन में झारखंड में एसआईबी का गठन किया गया है
रांची: मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा है कि झारखंड में जो केंद्रीय अर्द्धसैनिक बल उपलब्ध कराए गए हैं वह लगातार पुलिस के साथ मिलकर नक्सलियों से जुझ रहे हैं। झारखंड में नक्सलवाद अंतिम पड़ाव पर है। इस समय नक्सलियों पर जो सुरक्षाबलों द्वारा जो दबाव बन रहा है उसके लिए आवश्यक है कि झारखंड से अर्द्ध सैनिक बलों को आने वाले दो-तीन साल तक कमी न की जाए। वर्तमान में कुछ अर्द्ध सैनिक बलों को अन्य राज्य में अस्थायी रूप से भेजा गया है। कुछ बलों को स्थायी रूप से भेजने का प्रस्ताव है।
झारखंड राज्य में देश का 35 से 40 फीसदी खनिज का उत्पादन होता है, जिसके मद्देनजर यहां पर नक्सलियों द्वारा अपने संगठनात्मकढ़ांचा को पुन: सुदृढ़ करने की संभावना है। सीएम सोमवार को केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा बलाई गई बैठक में झारखंड का पक्ष रख रहे थे। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा अपनायी गई क्लीयर, होल्ड व डेवलप नीति के तहत वर्तमान परिपेक्ष्य में यहां केंद्रीय अर्द्ध सैनिक बलों की नितांत आवश्यकता है। इसके साथ ही निकट भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भी काफी अधिक संख्या में लगभग 275 कंपनी अर्द्ध सैनिक बलों की शांतिपूर्ण चुनाव कराने के लिए आवश्यकता होगी।
शीर्ष नक्सलियों द्वारा किया जा रहा आत्मसमपर्ण
सीएम ने कहा कि झारखंड सरकार झारखंड पुलिस और केंद्रीय अद्धर्Ñ सैनिक बलों के संयुक्त प्रयास से झारखंड से नक्लवाद का पूर्ण उन्मूलन करने के लिए कटिबद्ध है। दिसंबर 2014 में सरकार के आने के बाद नक्सलवाद को जड़ से उन्मूलन के लिए वृहत पैमाने पर प्रयास किए जा रहे हैं। बहुआयामी रणनीति के तहत जहां एक तरफ राज्य पुलिस और अर्द्ध सैनिक बल लगातार कंधे से कंधा मिलाकर नक्सलवाद को जड़ से समाप्त करने का कार्य कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर लोकप्रिय आत्म समपर्ण एवं पुर्नवास नीति के तहत अनेकों शीर्ष नक्सलियों के द्वारा आत्मसमपर्ण किया जा रहा है। इसके साथ ही उग्रवाद ग्रसित ईलाकों में सरकार के द्वारा फोकस एरिया डेवलपमेंट प्लान के तहत अपनी गरीब एवं आदिवासी जनता के आधारभूत संरचना उपलब्ध कराने के साथ अन्य विकास कार्यों का लाभ उपलब्ध कराया जा रहा है।
पिछले पांच साल में नक्सली घटनाओं में 60 फीसदी की कमी
अगर 2015 से 2019 की कुल नक्सली घटनाओं की तुलना 2010 से 2014 के नक्सली घटनाओं से की जाए तो 60 फीसदी की कमी आई है। इसी तरह जहां इस दौरान नक्सलियों द्वारा मारे गए नागरिकों की संख्या एक तिहाई से भी कम हुई है। वहीं सुरक्षाबलों से मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों की संख्या दोगुनी से भी अधिक हो गई है। वर्ष 2015 से 2019 के बीच आत्मसमपर्ण उग्रवादियों की संख्या दोगुनी हो गई है। यहां तक की पुलिस व रेगुलर हथियार की बरामदी में भी 33 फीसदी की वृद्धि हुई है।
लोकसभा चुनाव के दौरान कोई नक्सली घटना नहीं
इस बार लोकसभा चुनाव झारखंड में ऐतिहासिक रहा। सुरक्षाबलों के अथक प्रयास से चुनाव के दौरान झारखंड में पहली बार किसी तरह की नक्सली हिंसा की कोई घटना नहीं हुई। लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान चुनाव संबंधित विभिन्न कार्यों में सुरक्षाबलों के संलग्न रहने के कारण जो नक्सल विरोधी अभियान में कई आई थी, वह पिछले दो माह से गति पकड़ ली है। गृह मंत्रालय के मार्गदर्शन में झारखंड में एसआईबी का गठन किया गया है। जिसके द्वारा स्वतंत्र रूप से नक्सलियों के विरूद्ध आसूचना संकलन का कार्य किया जा रहा है। इस ईकाई के गठन के फलस्वरूप माओवादियों के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ सुनियोजित तरीके से कार्रवाई संभव हो पाया है।
पुलिस बम निरोधी दस्तों की संख्या भी दोगुनी
झारखंड में नक्सलियों के उन्मूलन के लिए गठित झारखंड जगुआर को अधिक प्रभावी बनाने के लिए मजबूत नेतृत्व के साथ विशेष प्रशिक्षण, नई तकनीक एवं आधुनिक हथियारों से सुसज्जित किया गया है। जिसके कारण राज्य पुलिस की नक्सल विरोधी अभियानों में आत्मनिर्भरता बढ़ी है। इसके साथ ही पुलिस बम निरोधी दस्तों की संख्या भी दोगुनी कर दी गई है। जिसके कारण अभियान के क्रम में सुरक्षा बलों को बारूदी सुरंगों से होने वाली क्षति की संभावना में कमी आएगी।
2500 से ज्यादा पुलिस अवर निरीक्षकों की बहाली
झारखंड पुलिस में पुलिस अवर निरीक्षकों की भारी कमी नक्सल अभियान के सुचारू संचालन में एक मुख्य बाधा थी। पिछले ढ़ाई दशक में सिर्फ 250 पुलिस अवर निरीक्षकों की बहाली हो पाई थी। हमारी सरकार ने 2500 से ज्यादा पुलिस अवर निरीक्षकों की बहाली की है, जो प्रशिक्षणरत हैं। ऐसी उम्मीद है कि इनके प्रशिक्षण के बाद फ ील्ड में आने से झारखंड पुलिस की कार्यशैली एवं कार्यक्षमता में वृद्धि होगी। गुजरात के तर्ज पर अति उग्रवाद प्रभावित जिलों के सुदूरवर्ती इलाकों से 2500 सहायक पुलिस की बहाली की गई है। जिससे नक्सलियों को नए सदस्य मिलने की संभावना क्षीण हो गई है।
सुदुरवर्ती नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सड़क संपर्क से जुड़ चुके हैं
सुदुरवर्ती दुरुह नक्सल प्रभावित क्षेत्र में आज सड़क संपर्क से जुड़ चुके हैं। वहां विकास की योजनाएं पहुंच रही हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका इन क्षेत्रों में स्थापित पुलिस पिकेट व कैंपों का रहा है। जहां कहीं भी नक्सलियों द्वारा विकास कार्यों में बाधा पहुंचाई गई वहां सुरक्षा सहायता से संपन्न कराया गया। 2001 से 14 के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में जहां सड़क 22248 किलोमीटर बनाई गई थी, वहीं पिछले पांच साल में 22865 किलोमीटर सड़क बनाई गई है। विशेष केंद्रीय सहायता योजना के तहत दी जा रही राशि से उग्रवाद प्रभावित जिलों में काफी तेजी से आधारभूत संरचनाओं एवं विकास कार्यों का कार्यान्वयन किया जा रहा है।