…ये परछाईं मुझे तुम्हारी याद दिलाती है।।
उगते सूरज के साथ,
जब मेरी परछाईं लम्बी होती जाती है,
तब ये मेरी परछाईं…ये परछाईं मुझे तुम्हारी याददिलाती है।।
हवा के झोकों से लहराती गेसुओं को सुलझती तू,
खुद से कश्मकश करती खुद को संभालती तू,
अचानक फिर तू मेरी नज़रों से ओझल हो जाती है,
तब ये मेरी परछाईं…ये परछाईं मुझे तुम्हारी याददिलाती है।।
हाँ, सच है कोई साथ नही होता हर वक़्त
खुद ही खुद को जीना पड़ता है,
आगोश में तुम्हारे आने को जी करता है।
यादें तेरी कभी जब मुझे सताती है,
तब ये मेरी परछाईं…ये परछाईं मुझे तुम्हारी याद दिलाती है।।
अँधेरे में खुद मुझमे सिमट जाती है
जरा सा उजियारे के साथ मेरे संग जुड़ जाती है,
साथ तुम भी तो हो हमारे , हर कदम, ऐ मेरे हमदम,
तेरे मेरे बीच के तन्हाइयों को करीब कर जाती है।
तब ये मेरी परछाईं…ये परछाईं मुझे तुम्हारी याददिलाती है।।
मैं खुद में तुझको पाता हूँ
खुद ही खुद से इतराता हूँ,
सपनों में आकर मुझको खुश्क सेभींगा भींगा कर जाती है।
तब ये मेरी परछाईं…ये परछाईं मुझे तुम्हारी याददिलाती है।।
तब ये मेरी परछाईं…ये परछाईं मुझे तुम्हारी याददिलाती है।।