कंपनी विधेयक पर चर्चा में शामिल हुए पोद्दार, कहा व्यापारी सम्मान का हकदार
रांची: सांसद महेश पोद्दार ने कहा है कि “भूल चूक – लेनी देनी” व्यापार की प्रचलित शब्दावली है,जहां व्यापार होगा, लेनदेन होगा वहां भूल – चूक स्वाभाविक है और इसे पुनः लेनदेन के जरिये ही सल्टाना बेहतर है.लेकिन अगर ऐसी चूकों की वजह से उद्यमी – व्यापारी को अदालतों के चक्कर काटने पड़े, जेल जाना पड़े तो उसकी उद्यमिता और उसके उत्साह का क्षय होगा और अंततः देश की उत्पादकता और अर्थव्यवस्था का नुकसान होगा. कंपनी संशोधन विधेयक 2020 के माध्यम से मोदी सरकार व्यापार जगत को अवांछित भय से राहत दे रही है जिसका पूरा उद्योग-व्यापार जगत स्वागत कर रहा है.राज्यसभा में मंगलवार को कंपनी संशोधन विधेयक 2020 पर चर्चा में शामिल महेश पोद्दार ने ये बातें कहीं.
पोद्दार ने कहा कि कंपनी (संशोधन) विधेयक-2020 की पूरे देश को प्रतीक्षा थी, ख़ास तौर पर देश के उस वर्ग को जो उत्पादक है, लेकिन उपेक्षित है.टैक्स भरता है लेकिन टार्गेट किया जाता है. यह अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग है लेकिन हमेशा अनर्थ की आशंका से भयभीत रहता है. जुर्म से कोसों दूर रहना चाहता है लेकिन जिसके ऊपर हमेशा जुर्माने की तलवार लटकती रहती है. हजार झंझावात झेल लेता है लेकिन झंझट नहीं चाहता.
देश के उद्यमी – व्यापारी समुदाय के हिस्से में ये तकलीफें दशकों से थी. लेकिन आज देश में ऐसी सरकार काम कर रही है, जिसके नेतृत्वकर्ता प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में ऐलानिया कहते हैं कि वेल्थ क्रियेटर को संदेह से नहीं देखा जाना चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए. जिस सरकार की वित्त मंत्री बजट भाषण की शुरुआत ही देश के उद्यमियों – व्यापारियों – करदाताओं को धन्यवाद देकर कहती है.लाभ हानि तो उद्यमी व्यापारी के रोजमर्रे की कहानी है लेकिन सम्मान उसे पहली बार मिल रहा है, जिसका हकदार वो हमेशा था.
उन्होंने कहा कि छोटी छोटी चूकों पर पीडक कार्रवाईयों से भयभीत उद्यमी – व्यापारी जगत को राहत देने के लिए ही कंपनी (संशोधन) विधेयक-2020 के तहत कुछ अपराधों को आर्थिक जुर्म की श्रेणी से बाहर निकाला गया है. खास तौर पर ऐसे मामले जो केवल तकनीकी और प्रक्रिया संबंधी चूकों के कारण होते हैं, जिनमें इरादतन धोखाधड़ी न हो अथवा लोकहित को कोई क्षति न पहुंचती हो, केवल उनमें ही राहत देने का प्रावधान किया जा रहा है. गंभीर किस्म के पराध आर्थिक जुर्म की श्रेणी में पहले की तरह बने रहेंगे. इस अधिनियम के दायरे में सिर्फ बड़ी कंपनियां नहीं, बल्कि छोटी -छोटी कंपनियां भी हैं. नॉन कंपाउंडेबल अपराधों को आर्थिक जुर्म की श्रेणी से बाहर नहीं रखा गया है. इस तरह के अपराधों की संख्या 35 थी और आज भी यही रहेगी.
उन्होंने कहा कि हमारी अदालतों में पहले से ही मुकदमों का अम्बार लगा हुआ है. इन छोटी छोटी चूकों की वजह से हुए मुकदमें उस बोझ को बढ़ा ही रहे हैं. प्रस्तावित संशोधन अदालतों पर मुकदमों का बोझ भी कम करेगा.
कोरोना संकट के समय यह संशोधन और भी प्रासंगिक है क्योंकि इसके जरिये कारोबार को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए गए हैं, क्योंकि इस वक्त लोगों को नौकरियों की जरूरत है. यह बिल स्टार्ट-अप्स और एसएमई पर प्रभावी बोझ को कम करने में मददगार होगा. नई – छोटी कंपनियों द्वारा अनुभव या संसाधनों की कमी के कारण कम्प्लायन्सेज में होनेवाली चूकों पर पीडक कार्रवाई से राहत देगा.
इस विधेयक में निहित एनसीएलएटी बेंच के अलावा अन्य न्यायाधिकरणों की अधिकतम शक्ति की सीलिंग को हटाने का प्रस्ताव बैकलॉग को कम करने में मदद करेगा. साथ ही यह प्रभावित पक्ष को अपीलीय निकाय तक आसानी से पहुंचने की अनुमति देगा.