रांचीः झारखंड विधानसभा चुनाव का पूरा पिक्चर क्लीयर हो चुका है. बीजेपी के 65 प्लस का मिशन तार-तार हो गया. ओवर कांफिडेंस भी बीजेपी के हार का कारण बना. पूरी ताकत झोंकने के बाद भी बीजेपी अपने मिशन को अंजाम तक नहीं पहुंचा पाई. इसके हार के कई कारण भी रहे. टिकट बंटवारे को समय पार्टी के अंदर गतिरोध शुरू हुआ. अपने कार्यकर्त्ताओं का टिकट काटकर बाहर से आए नेताओं को टिकट दे दिया. जिसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा है.
सहयोगी दल लोजपा और आजसू से दूरी
बीजेपी ने इस बार सहयोगी दलों को नजरअंदाज कर ओवर कांफिडेंस में अकेले चलने का फैसला लिया. यह बीजेपी को भारी पड़ गया. वहीं आरएसएस और इसकी अनुसांगिक संगठनों की नाराजगी ने भी भाजपा को परेशान किया है. भाजपा की हार के लिए यह बहुत बड़ा कारण बताया जा रहा है. भाजपा की हार में यह बड़ी भूमिका निभा गए.
सरयू राय को नजरअंदाज
टिकट बंटवारे में अपने ही सरकार के मंत्री सरयू राय को नजर अंदाज करना भी बीजेपी को महंगा पड़ा. सरयू को टिकट नहीं देने का संदेश भाजपा के खिलाफ गया. बिहारी लॉबी ने भी रघुवर दास और पार्टी के इस निर्णय को पचा नहीं पायी और भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. राय पर पार्टी के निर्णय के कारण पार्टी के अंदर के कई महत्वपूर्ण भीतरघात कर रहे थे.
बोरो प्लेयर्स पर बीजेपी का भरोसा
चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने बोरो प्लेयर्स को पार्टी में शामिल कराकर अपने लोगों को नराज कर दिया. झारखंड बहरागोड़ा से झामुमो के टिकट पर जीतकर विधायक बनने वाले कुणाल षाड़गी भाजपा में शामिल हो गये थे. भाजपा की टिकट पर वे चुनाव मैदान में थे. इस बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा. उसे भाजपा से झामुमो में आये समीर मोहंती ने हरा दिया. मांडू से जयप्रकाश भाई पटेल तो टक्कर में भी नहीं थे. लोहरदगा से कांग्रेस विधायक रहे सुखदेव भगत ने भी भाजपा का दामन थामा था. वहां से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर उरांव ने जीत दर्ज की.
जनजातीय समाज की नाराजगी
बीजेपी की हार के सबसे बड़े कारणों में जनजातीय समाज की नाराजगी भी रही. जनजातीय चेहरे के अभाव ने जनजातीय समाज को यह संदेश दिया कि अब प्रदेश में सामान्य लोगों की सत्ता ही बरकरार रहेगी. रघुवर दास का छत्तीसगढ़ से संबंध को भी प्रतिपक्षियों ने खूब भुनाया. भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व शायद यह समझने में भूल की और उसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा.