खास बातें:-
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ऐसे सिस्टम में काम करने पर महसूस करता हूं असहज
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परफॉरमेंस का कोई मापदंड है ही नहीं
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झारखंड में पॉलिटिकल मेच्योरिटी भी नहीं
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परफॉरमेंस करने वाले अफसरों को छोटे-छोटे प्रोजेक्ट में डाल दिया जाता है
रांची: झारखंड कैडर के कई ब्यूरोक्रेट्स खुद को असहज महसूस कर रहे हैं. इससे पहले भी राज्य के एक वरिष्ठ आईएएस अपनी दिल की बात कह चुके हैं. फिलहाल, वे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं.
अब राज्य के एक युवा आईएएस ने भी अपनी असहजता जाहिर की है. नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि सरकार का आना-जाना तो लगा रहता है, लेकिन हर बार सिस्टम में बदलाव से परफॉरमेंस पर असर पड़ता है.
झारखंड में काम करने के एवज में एक्सपोजर भी नहीं मिल पाता. हर बेहतर काम में कोई न कोई पेंच आ ही जाता है. ऐसे में सेंट्रल डेप्यूटेशन पर जाना ही अच्छा रहेगा.
सुझावों पर भी नहीं होता अमल
युवा आईएएस का मानना है कि झारखंड में सुझावों पर भी अमल नहीं होता. गंभीरता से बातों को सुना नहीं जाता है. जल्दी-जल्दी होने वाली ट्रांसफर पोस्टिंग से भी परफॉरमेंस पर असर पड़ता है.
तबादले के कारण नये कामकाज को समझने में एक से डेढ़ माह का समय लगता है. संबंधित विभाग की नियमावली की जानकारी लेनी पड़ती है. अगर कोई महत्वपूर्ण केस चल रहा है तो उसे समझना पड़ता है.
मैनपावर और योग्य कर्मियों को समझने में लगभग एक माह का समय लगता है. पुराने अफसर व सचिव के द्वारा लिए गये निर्णय और फाइलें देखने एवं समझने में समय लगता है. महत्वपूर्ण निर्णय लेने में कठिनाई होती है.
आईएएस लॉबी भी है एक बड़ा फैक्टर
युवा आईएएस का यह भी कहना है कि झारखंड कैडर में आईएएस लॉबी भी एक बड़ा फैक्टर है. अगर कोई आईएएस बेहतर काम कर रहा है तो सरकार से मिलकर एक नया रूप देने की कोशिश की जाती है. इस कारण परफॉरमेंस करने वाले अफसर फाइल करने से डरते हैं. अब तो नई परिपाटी यह भी चल गया है कि छोटी-छोटी बातों में आईएएस अफसरों के बीच रिएक्शन ज्यादा होता है. यही कारण है कि कई आईएएस अफसर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर ही जाना उचित समझते हैं।. इसकी वजह यह है कि परफॉरमेंस करने वाले अफसरों को छोटे-छोटे प्रोजेक्ट में डाल दिया जाता है, जिसके कारण एक्सपोजर नहीं मिल पाता.