आफत का है धुआं….
आफत का है धुआं धुंआ ही,
तनिक धुंधलका छटा नही|
रुक तू क्षण भर,
कुछ देर तू ठहर,
अभी अंधेरा हटा नही |
गर्जन,तर्जन भरी है आंधी,
कैसी उठती झकोर यहां,
तूफान भयंकर और सहमा सा,
आदमी चहुंओर यहां |
लगता लम्हा-लम्हा भारी,
सर से खतरा घटा नही,
रुक तू क्षण भर,
कुछ देर तू ठहर,
अभी अंधेरा हटा नही |
आशाओं के दीपक धर दे,
अब निराशा की खाई में,
त्याग शोणित पद चिन्हों को,
पीछे छूटी परछाई में |
घना अंधेरा कायम कुछ पल,
पूरब में पौ फटा नही |
रुक तू क्षण भर,
कुछ देर तू ठहर,
अभी अंधेरा हटा नही |
विध्वंस थमेगा,सृजन चलेगा,
मधुऋतु भी आएगी,
घुटन भरी अब तक की जो थी,
वह काली रात भी जाएगी |
रश्मि पूंज का आसमान से,
अभी स्वर्णरथ छूटा नही |
रुक तू क्षण भर,
कुछ देर तू ठहर,
अभी अंधेरा हटा नही |
रचनाकार-राजेन्द्र मेश्राम “नील”
चांगोटोला,बालाघाट (मध्यप्रदेश)