पटना: बिहार विधान परिषद की नौ सीटों के लिए छह जुलाई को होने वाले चुनाव को लेकर किसी भी राजनीतिक दलों ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन इनमें सबसे अधिक मारामारी कांग्रेस में देखने को मिल रही है. संख्या बल के लिहाज से कांग्रेस के कोटे में इसमें से एक सीट आएगी.
हालांकि कुछ कांग्रेसी दो सीटें मिलने की भी संभावना जता रहे हैं. कहा जा रहा है कि कांग्रेस के नेताओं ने इसके लिए राजद से बातचीत भी की है, लेकिन राजद के रुख को देखते ऐसा नहीं लगता.बिहार विधान परिषद की 17 खाली सीटों में से नौ पर छह जुलाई को मतदान होना है.
मोहम्मद हारून रशीद, अशोक चौधरी, कृष्ण कुमार सिंह, प्रशांत कुमार शाही, संजय प्रकाश, सतीश कुमार, राधा मोहन शर्मा, सोनेलाल मेहता और हीरा प्रसाद विंद की सदस्यता पिछले महीने समाप्त होने के बाद, इन नौ सीटों पर चुनाव होना है, इनमें से छह जेडीयू के जबकि तीन भाजपा के पास हैं.
अब विधायकों की संख्या के आधार पर स्थितियां बदल गई है. अब भाजपा, जेडीयू को पांच सीटें मिल पाएंगी जबकि राजद को तीन और कांग्रेस के हिस्से एक सीट जाएंगी. इनमें कांग्रेस की सीटें भले ही कम हो लेकिन विधान परिषद पहुंचने वालों की चाहत रखने वालों में सबसे अधिक नेता कांग्रेस में ही नजर आ रहे हैं.
वैसे, कांग्रेस इस चुनाव के जरिए जातीय समीकरण दुरूस्त करने की भी कोशिश में जुटी है. कांग्रेस के एक नेता की मानें तो चंदन यादव, राजन यादव और ललन यादव के नाम आगे चल रहे हैं. इसमें तीनों पूर्व में युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं.
इस रेस में चंदन फिलहाल आगे बताए जा रहे हैं. ललन को कांग्रेस में राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद का समर्थक माना जाता है, इस कारण इन्हें पार्टी विधान परिषद नहीं भेजना चाह रही है.कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष कौकब कादरी भी विधान परिषद पहुंचने की इस दौड़ में शामिल नजर आ रहे हैं.
कांग्रेस के प्रवक्ता आजमी बारी स्पष्ट कहते भी हैं कि इस चुनाव में कांग्रेस किसी मुस्लिम को विधान परिषद भेजने की तैयारी में है. पार्टी नेतृत्व हालांकि इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर यह भी मानती है कि मुस्लिम और यादव मतदाता पहले से ही महागठबंधन के साथ यानी राजद के साथ है, इस कारण कांग्रेस अगड़े जातियों को भी साधने की तैयारी में हैं.
ऐसे में पार्टी कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा, वरिष्ठ कांग्रेस नेता सदानंद सिंह, अजय सिंह, सुजीत कुमार सिन्हा उर्फ दीपू और नरेंद्र कुमार पर विचार कर सकती है. कांग्रेस इससे पहले भी अशोक चौधरी और सरफराज अहमद को प्रदेश अध्यक्ष रहते ही विधान परिषद पहुंचा चुकी है.
इधर, अजय सिंह की पहचान एक राजपूत कांग्रेसी नेता के रूप में रही है और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और बिहार में ‘को-ऑपरेटिव’ के जनक तपेश्वर सिंह के पुत्र हैं. इधर, दीपू कायस्थ समाज से आते हैं और कायस्थ महासभा ने इनके नाम को अपनी ओर से आगे भी बढ़ाया है.
बहरहाल, कांग्रेस में विधान परिषद चुनाव में स्थिति ‘एक अनार- सौ बीमार’ वाली हो गई है, अब देखना है कांग्रेस के ‘आलाकमान’ किसे विधान परिषद पहुंचाने का टिकट थमाते हैं. हालांकि कोई नेता खुलकर दावेदार भी नहीं मान रहे हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सदानंद सिंह और ललन यादव कहते हैं कि वे इस रेस में नहीं हैं, लेकिन आलाकमान जो भी निर्णय लेंगे वह सर्वोपरि होगा.