रांचीः विधायक सरयू राय ने भू-राजस्व विभाग के सचिव को पत्र लिखा है. पत्र में कहा है कि झारखंड सरकार और टाटा स्टील लि० के बीच वर्ष 2005 में हुये टाटा लीज नवीकरण समझौता के दौरान एक पृथक अनुसूची के तहत करीब 1700 एकड़ लीज भूमि को लीज से बाहर किया गया था.
कारण कि इस भूमि पर करीब 86 बस्तियां बस गई थीं, जिन्हें मालिकाना हक दिलाने के लिये झारखंड सरकार के तत्कालीन वित्त एवं नगर विकास मंत्री सह जमशेदपुर पूर्व के विधायक रघुवर दास के नेतृत्व में बस्ती विकास समिति बनाकर आंदोलन किया जा रहा था.
उक्त बस्तियों को टाटा लीज से अलग करने का उद्देश्य यही बताया गया था कि टाटा लीज से अलग हो जाने के बाद ये बस्तियां जिस जमीन पर बसी हुई हैं वह जमीन सरकार की हो जायेगी और तब सरकार इन बस्तियों को आसानी से मालिकाना हक दे देगी.
इन बस्तियों के टाटा लीज से अलग होने पर जमशेदपुर पूर्व विधानसभा क्षेत्र में पुरजोर जश्न मना, जनप्रतिनिधि का अभिनंदन हुआ, इसे एक बड़ी उपलब्धि माना गया, लोगों को अपनी बासगीत जमीन पर मालिकाना हक मिलने का भरोसा बढ़ गया.
विगत दिनों जमशेदपुर की इन बस्तियों को मालिकाना हक के बारे में आपके साथ दो बार मेरी औपचारिक वार्ता हुई है. इसके अतिरिक्त राज्य सरकार के मुख्य सचिव के कार्यालय कक्ष में भी एकबार इस विषय पर हमलोगों के बीच सार्थक विमर्श हो चुका है.
प्रसन्नता की बात है कि सरकार का रूख इस बारे में जनहित के अनुकूल है. इस संबंध में आपको स्मरण दिलाना चाहता हूं कि 2005 में टाटा लीज से अलग की गई इन बस्तियों का वर्ष 2006 में सर्वे शुरू किया गया था.
पूर्वी सिंहभूम जिला प्रशासन ने इसके लिये अलग से अमीन एवं अन्य राजस्व कर्मियों को बहाल किया था. सर्वे पर 10 से 15 लाख रूपया के बीच व्यय हुआ था. हालांकि जिला के सर्वे सेटलमेंट अफसर आदि अधीनस्थ राजस्व अधिकारियों ने इस सर्वे प्रक्रिया को अनुपयोगी बताते हुये इसका विरोध किया था, परंतु सरकार के निर्देशानुसार उपायुक्त एवं अतिरिक्त उपायुक्त स्तर पर इस विरोध को दरकिनार कर सर्वे कराया गया.
इस सर्वे की घोषणा होने पर एक बार फिर जमशेदपुर पूर्व में घनघोर जश्न मना. लोगों को लगा अब मालिकाना हक दरवाजे पर आ गया है. पर यह एक छलावा साबित हुआ. न तो इस सर्वे के नतीजे सार्वजनिक हुये और न ही इनका कोई कारगर उपयोग मालिकाना हक के संदर्भ में हुआ. इस पर हुआ व्यय पूरी तरह निष्फल सिद्ध हुआ.
इस सर्वे के नतीजे पूर्वी सिंहभूम जिला प्रशासन कार्यालय एवं राज्य सरकार के राजस्व विभाग में अवश्य ही संरक्षित होंगे. अगर यह सर्वे पूरा हुआ होगा, इसे बीच में छोड़ नहीं दिया गया होगा और इसके आंकड़ों का सम्यक् विश्लेषण किया गया होगा तो सम्प्रति जमशेदपुर की उक्त बस्तियों को मालिकाना हक दिलाने की प्रक्रिया में इस सर्वे के नतीजों का कारगर उपयोग किया जा सकता है.
चूंकि मुख्यमंत्री सहित आप एवं सरकार के अन्य जिम्मेदार पदाधिकारी सरकार अथवा निजी एवं लोक उपक्रमों की भूमि पर लंबे समय से बसे लोगों को उस भूखंड पर वैधानिक तरीका से मालिकाना हक दिलाने के प्रति सचेष्ट हैं, इसलिये प्रासंगिक सर्वे के संबंध में आपको अवगत करा रहा हूं.
एक ओर राज्य सरकार आम नागरिकों को मालिकाना हक दिलाने के विधिसम्मत विकल्पों पर विचार कर रही है तो दूसरी और खास श्रेणी के कतिपय प्रभावशाली व्यक्ति इसकी आड़ में अपना उल्लू सीधा करना चाह रहे हैं.
जमशेदपुर में विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री, आम चुनावों के समय विधानसभा प्रत्याशी रह चुके लोग एवं इनके लगुए-भगुए इस खास श्रेणी में शामिल हैं. हाल के दो-चार वर्षों में इस खास श्रेणीवालों ने धौंस दिखाकर और राजनीतिक संरक्षण पाकर सरकार की और टाटा स्टील की महँगी लीज भूमि पर कब्जा कर ली है और आलीशान बहुमंजिली इमारतें खड़ा कर ली है.
ऐसे लोग मालिकाना हक के प्रति सरकार के संवेदनशील दृष्टिकोण की आड़ में अपना निहित स्वार्थ साधने की साजिश कर रहे हैं. आमलोगों को उनकी बासगीत भूमि पर मालिकाना हक दिलाने की चेष्टा के साथ ही सरकार को ऐसे खासलोगों के षड्यंत्र पर भी नजर रखनी होगी और इनके नापाक मंसूबों को नाकाम करना होगा.
राज्य में स्वस्थ शहरीकरण की प्रक्रिया को गति देने के लिये भी यह आवश्यक हैअनुरोध है कि उपर्युक्त विवरण के आलोक में पूर्वी सिंहभूम जिला प्रशासन द्वारा 2006 में कराये गये प्रासंगिक सर्वे प्रतिवेदन को खोजकर इसके नतीजों पर गौर करेंगे ताकि जमशेदपुर में मालिकाना हक की मांग को वैधानिक स्वरूप प्रदान करने में सहूलियत हो सके और राज्य भर में इसके विस्तार की संभावना साकार की जा सके.