राजेश तिवारी,
थ्री इडियट्स है मनोज कुमार की पंसदीदा फिल्म
रांचीः इस्पात की चौखट लांघ कर आईएएस बनना. फिर शासन-प्रशासन में बेहतर परफॉरमेंस कर लोगों के बीच अपनी पहचान बनाना. करियर में एक्सपोजर भी पाना. इतने रास्तों से गुजर कर मंजिल पाने के पीछे कहीं न कहीं कोई आइडियल होता है.
प्रेरणादायी किताबों का साथ मिलता है या कोई ऐसी फिल्म जो आगे बढ़ने के लिए हमेशा हौसला देती है. अधिकांश ब्यूरोक्रेट्स इन्हीं मूलमंत्रों को आत्मसात कर आगे बढ़ते हैं. लेकिन इन सबसे अलग झारखंड कैडर के एक ऐसे युवा आईएएस हैं, जिन्होंने अपनी कार्यशैली से लोगों के बीच अपनी अलग पहचान बनाई है.
रांची के डीसी रह चुके राय महिमापत रे किताबों से ही प्रेरणा लेते हैं. राय महिमापत रे 2011 बैच के अफसर हैं. वह टीवी नहीं देखते. फिल्मो के भी शौकीन नहीं है. यहीं नहीं बच्चों को भी टीवी से दूर रखते हैं. बस उनकी एक प्रेरणादायी किताब है फ्रेडरिक बैकमैन की ए मैन कॉल्ड ओव . इसी से वे प्रेरणा लेते हैं.
वहीं डीसी और नगर आयुक्त के रूप में अपनी पहचान बना चुके आईएएस अफसर मनोज कुमार ऑटोबायोग्राफी योगी (योगदानंद) किताब को अपनी प्रेरणास्त्रोत मानते हैं. साथ ही वे थ्री इडियट्स फिल्म को देखना नहीं भूलते.
उनका कहना भी है फिल्म में फुल मस्ती के साथ कांसेप्ट क्लियर का संदेश भी है. झारखंड कैडर की आईएएसअफसर निधि खरे का भी मानना है कि किताबों से ज्यादा वफादार कोई दोस्त नहीं हो सकता है. इनसे मिले ज्ञान जीवन भर साथ रहते हैं. इनका मूल्य रत्नों से भी अधिक होता है, क्योंकि किताबें अन्त:करण को उज्ज्वल करती हैं. मानसिक विकास में सहायक साबित होती हैं. हमेशा सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं.
उन्होंने कहा कि आज भी समय निकाल कर प्रेमचंद, खलिल गिबरन, स्वामी विवेकानंद और डॉ एस राधाकृष्णन की किताबें पढ़ते हैं. इसमें प्रेमचंद की पंच परमेश्वर सबसे पसंदीदा है.
इसके अलावा सोजे वतन, गोदान, कफन, निर्मला, गबन, ईदगाह, पूस की रात, नमक का दारोगा व शतरंज के खिलाड़ी भी पसंदीदा किताब है. वहीं खलिल गिबरन की द ब्रोकेन विंग्स, सैंड एंड फोम, टीयर एंड स्माइल, द वंडरर, द आइ ऑफ प्रोफेट पसंसदीदा किताब है. लेकिन इन सबमें मिरर ऑफ द सॉल को बार-बार पढ़ती हूं. वहीं स्वामी विवेकानंद और डॉ एस राधाकृष्णन की किताबें भी प्रेरणादायी हैं.