परिवार के सदस्यों को करनी पड़ती है कड़ी मेहनत, महिला सदस्यों का रहता है अहम सहयोग
रांची: फुचका यानि गोलगप्पा का केवल नाम ही सुनकर मुंह में पानी आ जाता है. शहर में जगह-जगह ठेला पर गोलगप्पा बेचते वाले आसानी से दिख जाएंगे. सामान्य तौर पर पुरुष ही गोलगप्पा बेचता चौक-चौराहों और गलियों में नजर आते है, लेकिन गोलगप्पा बनाने में परिवार के पूरे सदस्यों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. विशेषकर महिला सदस्यों का इस काम में विशेष योगदान रहता है.
राजधानी रांची के कांके रोड स्थित एक मुहल्ले में रहने वाले 40 में से 35 परिवार के लोग गोलगप्पा बनाने और बेचने के कारोबार से जुड़े है. इस कारण यह पूरा मुहल्ला ही शहर में फुचका मुहल्ले के नाम पर मशहूर हो गया है. मुहल्ले में रहने वाली महिलाएं सुबह से ही गोलगप्पा, फुचका या पानीपुरी बनाने में जुट जाती है और पुरुष सदस्य दोपहर बाद इसे बेचने के लिए विभिन्न मुहल्लों और चौक-चौराहे के लिए निकलते है. और जब मुहल्ले के सभी फुचके वाले एक साथ अपने कारोबार के लिए घर से निकलते है, तो पूरा कुछ देर के लिए फुचका और ठेले वालों के जुलूस की दृश्य उभर कर सामने आती है, आगे चलकर सभी गोलगप्पे वाले शहर के विभिन्न चौक-चौराहों और मुहल्लों के लिए निकल जाते है.
फुचका बेचने वाले सत्येंद्र साव, गुड्डू साव और परमानंद प्रजापति का कहना है कि मुहल्ले की कई पीढ़ियां लगातार फुचका का व्यापार करती रही हैं. नई नस्ल को भी इससे गुरेज नहीं है ..बल्कि, समय के साथ इनके हुनर मे और निखार आ गया है.
फुचका बेचने का काम तो पुरुष ही करते हैं. लेकिन, उसके आकार मे निखार और स्वाद मे संतुष्टि घर की महिलाओं की कड़ी मेहनत से ही आ पाता है. इस मुहल्ले का बना फुचका रांची के कई मुख्य चौक-चौराहों पर पहुंचता है. ग्राहक जब इनके फुचके की तारीफ करते हैं ..तो, इन्हें अपने फुचका मुहल्ले पर गर्व महसूस होता है.