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Home शिक्षा सामान्य ज्ञान क्या आप जानते हैं ?

शरद पूर्णिमा को इस तरीके से खीर बनाकर खाने से मिलती है असाध्य रोगों से मुक्ति

by bnnbharat.com
September 14, 2022
in क्या आप जानते हैं ?, वैदिक भारत, सनातन-धर्म, संस्कृति और विरासत, स्वास्थ्य
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शरद पूर्णिमा को इस तरीके से खीर बनाकर खाने से मिलती है असाध्य रोगों से मुक्ति : शरद पूर्णिमा पर विशेष

शरद पूर्णिमा को इस तरीके से खीर बनाकर खाने से मिलती है असाध्य रोगों से मुक्ति : शरद पूर्णिमा पर विशेष

शरद पूर्णिमा के महत्व से हम सभी अच्छी तरह से जानते हैं लेकिन इस दिन खीर किस तरह से बनाकर कैसे खाना चाहिए यह शायद ही कोई जानता हो। इस दिन कोई खिचड़ी तो कोई खीर बनाकर कहा लेते हैं लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा की इस दिन का विशेष महत्व क्या है । शरद पूर्णिमा की रात में चांद की किरणों में खीर रखने की परंपरा है। हिन्दू ग्रंथों मे एस उल्लेख है की शरद पूर्णिमा की रात चाँद से अमृत वर्षा होती है।धार्मिक मान्यता है की शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्र सोलह कला के साथ उदय होतें हैं। इस दिन सही विधि से बनाए गए खीर अमृत तुल्य होते हैं ऐसी मान्यता है । इस विशेष आर्टिकल के जरिए हम यह बताने जा रहें है की शरद पूर्णिमा के विशेष अवशर पर किसप्रकार से विशेष खीर बनाया और प्रयोग किया जाए ।

पंचांग के मुताबिक हर साल आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा मनाई जाती है। इस वर्ष शरद पूर्णिमा का व्रत रविवार, 9 अक्टूबर 2022 को रखा जाना है । तो इस वर्ष अमृत तुल्य खीर जरूर बनाएं ।

शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाने के लिए आपको इन वस्तुओं का वेवस्था कर लें ।

1. पुराना पीपल के वृक्ष के छाल का अर्क
2. काली गाय का दूध
3. सुगंधित अरवा चावल
4. ताल मिश्री(ताल मिश्री न मिले तो गुड़)
5. स्वर्ण(सोना-Gold)
6. चांदी का थाली
7. चांदी की चम्मच

सबसे पहले हम पूर्णिमा के याद या दो दिन पहले पीपल के वृक्ष के छाल का अर्क निकाल लें । इसके लिए पुराना से पुराना यदि 100 वर्षो से भी पुराना पीपल के वृक्ष का छाल मिले तो और बेहतर है। 2 से 3 किलो कच्चा छाल को घर में कूट कर चूर्ण को कपड़े से चालकर महीन अर्क प्राप्त होता है। इसे 100 से 200 ग्राम अर्क कपड़े से छान कर रख लें।

अब शरद पूर्णिमा की शाम जिस रात पूर्ण चंद्रोदय होना है उस शाम को खीर बनाना शुरू करें। खीर बनाने के लिए अगर कासा या चांदी का बर्तन मिले तो उत्तम हैं नहीं तो स्टील से भी काम चलाया जा सकता है। अब काली देशी गाय के शुद्ध दूध को बर्तन में उबालें, दूध में उबाल शुरू होते ही अरवा चावल डाल दें। साथ ही कोई स्वर्ण आभूषण (जैसे कंगन या चेन) दूध में डाल दें। खीर को चलाने के लिए चांदी के चम्मच का इस्तेमाल करें। खीर पक जाने के बाद अंत में मात्रा अनुसार ताल मिश्री मिला लें।

खीर जब बनकर तैयार हो जाए तो अब स्वर्ण आभूषण निकाल लें और खीर को चांदी के थाली में परोस कर वैसी जगह रखे जहां पूरी रात थाली के ऊपर चांद की रोशनी पड़ती रहे।
थाली में खीर परोसने के बाद जब खीर ठंढा हो जाये तब पीपल के छाल के अर्क को खीर के ऊपर छिड़क दें जिससे कि खीर पूरी तरह अर्क से ढक जाए।

अब घर से सभी सदस्य सफेद कपड़े में यदि संभव हो तो चाँद के रौशनी में ही खीर के आस पास सुबह 4 बजे तक बैठे।
प्रातः सूर्योदय के पहले ही नाहा धो और निमित्त होकर सभी सदस्य खीर को भोग के रूप में ग्रहण करें। चंद्रमा की रोशनी में रखी हुई खीर खाने से मन और तन को शीतलता मिलती है। ऐसा माना जाता है कि यह खीर अमृत से युक्त होती है। इसलिए इसे घर के सभी लोगों को खाना चाहिए और प्रसाद के रूप में सभी को वितरित करना चाहिए।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय जी का जन्म हुआ था। जहां उत्तर भारत में दूध-चावल की खीर बनाकर शरद पूर्णिमा के दिन रात भर चाँदनी की रोशनी में रखने की परंपरा है। वहीं पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में शरद पूर्णिमा के दिन कुंवारी कन्याएं सुबह स्नान के बाद सूर्यदेव और चन्द्रमा की पूजा करती हैं। माना जाता है कि जो कन्या इस दिन सच्चे मन से व्रत रखकर पूजा करती है उसे मनचाहा वर प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।

लगातार 5 वर्षों तक ऐसा करने से अस्थमा जैसे असाध्य रोग का भी ठीक हो सकते हैं।

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