अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में टेस्ट ट्यूब बेबी के लिए वर्ष 2023 तक की वेटिंग मिल रही है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह पिछले कुछ वर्षों के भीतर बांझपन ग्रस्त मरीजों की संख्या का बढ़ना है.
डॉक्टरों के अनुसार, एम्स में अब तक 4 हजार से ज्यादा टेस्ट ट्यूब केस हो चुके हैं, जबकि करीब एक हजार मरीज अभी उपचाराधीन हैं. ऐसे में फिलहाल नए मरीजों को करीब चार साल तक की वेटिंग दी जा रही है.
प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग के वरिष्ठ डॉक्टर सुनेश कुमार बताते हैं कि आईवीएफ तकनीक को लेकर एम्स देश का सबसे बेहतर संस्थान है. बीते कुछ वर्षों में टेस्ट ट्यूब बेबी के लिए मरीजों की संख्या काफी अधिक पहुंची है. ऐसे में वेटिंग चार वर्ष तक की है.
एम्स की वार्षिक रिपोर्ट 2017-18 के अनुसार, दिल्ली, बिहार, यूपी, राजस्थान और हरियाणा से सर्वाधिक मरीज एम्स में टेस्ट ट्यूब बेबी के लिए पहुंचते हैं. करीब 4655 केस पुराने और 1091 नए मरीज एम्स में पंजीकृत हैं. सप्ताह में एक दिन आईवीएफ की ओपीडी होती है.
डॉक्टरों की मानें तो आईवीएफ के लिए एम्स को पहली प्राथमिकता देने के पीछे सफलता दर भी है. इस तरह के मामलों में अक्सर मरीज या उसके परिजन भरोसेमंद संस्थान का चुनाव करते हैं. कई बार उन्हें डर लगा रहता है कि ज्यादा फीस देने के बाद भी फायदा होगा या नहीं, जबकि एम्स में आने के बाद पहले ही उन्हें बता दिया जाता है कि दुनिया भर में आईवीएफ की सफलता दर करीब 35 फीसदी के आसपास ही है.
एम्स में वर्ष 2008 से आईवीएफ सुविधा उपलब्ध है. एम्स में आईवीएफ की कीमत भी निजी क्षेत्रों की तुलना में काफी कम है. डॉ. सुनेश कुमार ने बताया कि 40 वर्ष से अधिक उम्र की महिला को आईवीएफ के लिए एम्स नहीं लेता है. चूंकि इस उम्र के बाद शारीरिक रूप से मरीज के साथ काफी चुनौतियां बढ़ जाती हैं. इतना ही नहीं एम्स एकमात्र ऐसा संस्थान है जहां पुरुष और महिला दोनों के लिए बांझपन का उपचार उपलब्ध है. इसके तहत करीब 14 श्रेणियों के तहत उपचार मिलता है. इसमें डोनर एग से लेकर अत्याधुनिक आईसीएसआई और आईयूआई उपचार तक शामिल है.
डॉ. सुनेश कुमार बताते हैं कि प्रसूति एवं स्त्री रोग को लेकर एम्स काफी सफलताएं हासिल कर चुका है. गर्भावस्था के दौरान अगर सही तरह से जांच हो तो जन्मजात विकारों की पहचान समय पर हो सकती है. इसके लिए एम्स में खास तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है. गर्भावस्था में ही शिशु के जन्मजात विकारों की पहचान होने से उसे समय पर चिकित्सा मिल सकती है.