किसी भी प्रकार का कैंसर होना आज कल आम बात हो गया है .बहुत से लोगों को इसके लक्षण नहीं दिखाई देता है ना ही समझ आते है. इससे जान का जोखिम बढ़ जाता है. हाल ही में आए शोध में कक्यूर्मा लॉन्गा (हल्दी के पौधे) की जड़ों से निकले करक्यूमिन को पेट का कैंसर रोकने या उससे निपटने में मददगार पाया गया है.
एक्सपर्ट की राय-
इस बारे में हेल्थ केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. के के अग्रवाल ने कहा कि पेट का कैंसर कई वर्षों में धीरे-धीरे विकसित होता है, इसलिए शुरूआत में कोई स्पष्ट लक्षण नहीं होते हैं. सामान्य लक्षणों में भूख कम होना, वजन में कमी, पेट में दर्द, अपच, मतली, उल्टी (रक्त के साथ या बिना उसके), पेट में सूजन या तरल पदार्थ का निर्माण, और मल में रक्त आना शामिल हैं. इन लक्षणों में से कुछ का इलाज किया जाता है, क्योंकि वे दिखाई देते हैं और गायब हो जाते हैं, जबकि अन्य लक्षण उपचार के बावजूद जारी रहते हैं.
पेट का कैंसर के मुख्य कारक-
पेट का कैंसर की उच्च दर के लिए तनाव, धूम्रपान और अल्कोहल जिम्मेदार हो सकते हैं. धूम्रपान विशेष रूप से इस स्थिति की संभावना को बढ़ाता है.
भारत में कई जगहों पर, आहार में फाइबर सामग्री कम रहती है. अधिक मसालेदार और मांसाहारी भोजन के कारण पेट की परत में सूजन हो सकती है, जिसे अगर छोड़ दिया जाए तो कैंसर हो सकता है.
पेट का कैंसर का इलाज-
पेट के कैंसर के लिए पर्याप्त फॉलो-अप और पोस्ट-ट्रीटमेंट देखभाल की आवश्यकता होती है, इसलिए नियमित जांच के लिए स्वास्थ्य टीम के संपर्क में रहना महत्वपूर्ण है. पहले कुछ सालों के लिए स्वास्थ्य टीम से हर 3 से 6 महीने में मिलने की सिफारिश की जाती है. उसके बाद सालाना मिला जा सकता है. हालांकि पेट के कैंसर के निदान के बाद जीवन तनावपूर्ण हो जाता है लेकिन सही उपचार, जीवनशैली में बदलाव और डॉक्टरों के समर्थन से मरीज ठीक हो सकता है.
क्या कहते हैं आंकड़े-
वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड इंटरनेशनल के पेट के कैंसर संबंधी आंकड़ों के अनुसार, दुनियाभर में हर साल गैस्ट्रिक कैंसर के अनुमानित 9,52,000 नए मामले सामने आते हैं, जिसमें लगभग 7,23,000 लोगों की जान चली जाती है (यानी 72 प्रतिशत मृत्यु दर). भारत में, पेट के कैंसर के लगभग 62,000 मामलों का हर साल निदान किया जाता है (अनुमानित 80 प्रतिशत मृत्यु दर के साथ).