खास बातें:-
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चल रही टेंडर की प्रक्रिया भी स्थगित, नई टेंडर पर भी रोक
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आपूर्तिकर्ताओं का भुगतान लंबित, अफसरों और ठेकेदारों की भी लापरवाही हो रही उजागर
रांचीः झारखंड में फाइनेंशियल क्राइसिस के साथ राज्य में चल रहे करोड़ों रुपए के प्रोजेक्टों की रफ्तार धीमी हो गई है. इसकी वजह यह भी है कि मेटेरियल सप्लाई करने वालों का भुगतान पिछले तीन चार माह से लंबित है. वहीं सरकार ने नए टेंडर निकालने और चल रही टेंडर की प्रक्रिया पर रोक लगा रखी है. जानकारी के अनुसार राज्य में 5000 करोड़ रुपए से अधिक के टेंडर फिलहाल रूके पड़े हैं.
क्यों बनी है ऐसी स्थिति-
मुख्य सचिव स्तर से सभी विभागों को जारी पत्र में कहा गया है कि जो पहले टेंडर निकले हैं और डाले जा चुके हैं उन्हें भी फाइनल नहीं करें. मुख्य सचिव ने 24 दिसंबर 2019 और 10 जनवरी 2020 को सभी विभागों को पत्र लिखकर सरकार के पूर्ण गठन तक नई योजनाओं को स्वीकृत नहीं करने और राशि जारी नहीं करने का आदेश दिया था. इस आदेश के बाद से विकास कार्यों की गति तत्काल रूक गई है.
पांच हजार करोड़ से अधिक के टेंडर लंबित-
एक अनुमान के मुताबिक राज्य के विभिन्न कार्य विभागों में सरकार के इस निर्णय से लगभग पांच हजार करोड़ रुपए से अधिक के विकास कार्यों के टेंडर पर ब्रेक लग गया है.
जानकारी के अनुसार, फिलहाल भवन निर्माण विभाग में दो हजार करोड़, ग्रामीण विकास में एक हजार करोड़, पथ निर्माण में एक हजार करोड़, वहीं अन्य विभागों में लगभग एक हजार करोड़ रुपए के टेंडर निकालने की प्रक्रिया स्थगित हो गई है.
आपूर्तिकर्ताओं का भुगतान लंबित-
प्रोजेक्ट में आपूर्तिकर्ताओं द्वारा हर माह लगभग 60 करोड़ के बालू, 50 करोड़ के चिप्स और लगभग 100 करोड़ के ईंट की सप्लाई की जाती है. इसका आधार 4:3:1 (चार कड़ाही बालू. तीन कड़ाही चिप्स और एक कड़ाही सीमेंट) माना गया है.
दूसरी वजह यह भी है कि बार-बार प्रोजेक्ट के डिजाइन और डीपीआर में बदलाव होने के कारण प्रोजेक्ट कॉस्ट बढ़ जाता है. ठेकेदार को समय पर पैसा नहीं मिलने के कारण आपूर्तिकर्ताओं का भी भुगतान लंबित हो जाता है. प्रदेश में आपूर्तिकर्ताओं का लगभग 1000 करोड़ रुपये से भी अधिक का भुगतान लंबित है.
राजस्व की वसूली भी हो रही कम-
सरकार को जहां से राजस्व मिलता है, वहां से वसूली भी कम हो रही है. जीएसटी लागू होने के बाद भी घपला हो रहा है. इससे पहले ठेकेदारों को जो पेमेंट होता था, उसमें टैक्स काट लिया जाता था. जब से जीएसटी लागू हुई है, तब से बिना टैक्स के पेमेंट हो रहा है.
इस कारण टैक्स नहीं आ पा रहा है. वहीं एसी-डीसी बिल की बाध्यता खत्म होने के कारण भी वित्तीय संकट गहरा रहा है. अब अफसर उपयोगिता प्रमाण पत्र में सिर्फ लिखकर दे देते हैं कि पैसा का उपयोग हो गया है. लेकिन इसका कोई सत्यापन नहीं हो पा रहा है.