रांचीः झारखंड के कवि भी होलियाना मूड में आ गए हैं. जमकर व्यंग्य वाण छोड़े जा रहे हैं. होली पर कवियों ने विभिन्न रंगों में अपनी रचनाएं प्रस्तुत की है. सामयिक घटनाक्रम, प्रेम, हास्य व्यंग समेत विभिन्न विषयों पर कवियों ने कलम चलाई है. कवि नरेश बंका कहते हैं, “हमारे नेता बारह माह होली मनाते हैं ….गिरगिट से भी तेज रंग बदलते हैं…. एक दूसरे पर कीचड़ उछालते हैं.” वह कहते हैं हमें रंगों से डर नहीं लगता, रंग बदलने वालों से डर लगता है.
कोरोना से डरो ना, सावधानी रखो ना, रंग उमंग में डूबो ना, हैप्पी होली बोलो ना
सामयिक चर्चा पर नरेश बंका लिखते हैं, “कोरोना से डरो ना, सावधानी रखो ना, रंग उमंग में डूबो ना, हैप्पी होली बोलो ना.” कवियत्री सुरेंद्र कौर नीलम दिल्ली की घटनाओं पर अपनी बात रखती है- कैसे खेलूं दिल से होली ….जब दिल वालों के शहर दिल्ली में घुल रहें है दिलों में विषैले रंग, आओ लगाएं सद्भावना का तिलक… प्रेम की पिचकारी में भरकर बिखेर दें भाईचारे का इत्र. संगीता गुजारा टॉक लिखती है – रंगों की होली में रंग दो अपने रंग में जी….. सारे रंग फीके हैं तेरे सामने जी.