खास बातें:-
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अब तक विद्युत नियामक आयोग के पास नहीं है अपना भवन
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भवन निर्माण का इस्टीमेट15 करोड़, किराया में खर्च हो चुका हैं दो करोड़
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भवन नहीं होने से मीटिंग और जनसुनवाई के आयोजन पर एक करोड़ खर्च
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वर्ष 2009 में आयोग को भवन निर्माण के लिए मिली थी एक एकड़ जमीन
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पुलिस हॉउसिंग कॉरपोरेशन ने 2012 में भवन का दिया था इस्टीमेट
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फिर 2015 में इसकी जिम्मेवारी सौंपी गई भवन निर्माण विभाग को
रांची: सूबे के 32 लाख से अधिक बिजली उपभोक्ताओं की सुनवाई करने वाले झारखंड राज्य विद्युत नियामक आयोग की सरकार नहीं सुन रही है. आयोग गठन के 10 साल गुजर जाने के बाद भी अपना भवन नहीं मिल पाया है.
सरकारी उदासीनता के कारण अब तक फेंका-फेंकी ही हो रहा है. इस मसले पर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर भी की गई थी. इस पर हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को निर्देश दिया था कि पांच करोड़ रुपये का जो प्रावधान है, उसे तुरंत रिलीज किया जाये. इसके बावजूद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई. फिर अवमाननावाद भी हाईकोर्ट में फाइल किया गया है.
पूर्व मुख्यमंत्री ने की थी घोषणा
24 सितंबर 2018 को रांची के होटल बीएनआर में आयोजित सभी राज्यों के फोरम ऑफ रेगुलेटर की बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मंच से घोषणा की कि आयोग के भवन निर्माण को स्वीकृति दे दी गई है.
हालांकि हकीकत इसके विपरीत है. अब तक भवन निर्माण विभाग को स्वीकृति नहीं मिली है. इसके कारण विभाग आगे की कार्रवाई नहीं कर रहा है.
किराये के भवन में चल रहा आयोग का कार्यालय
झारखंड राज्य विद्युत नियामक आयोग का अपना भवन नहीं होने के कारण आयोग का कार्यालय सैनिक भवन और करमटोली स्थित किराये के मकान में चल रहा है. इसके एवज में हर माह 95 हजार रुपये किराये का भुगतान किया जाता है. इस हिसाब से अब तक 1.71 करोड़ रुपये किराये का भुगतान हो चुका है.
वहीं जनसुनवाई और अन्य आयोजन में 75 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं. हर साल जनसुनवाई मीटिंग में लगभग पांच लाख रुपये खर्च होते हैं.
फेंका-फेंकी में गुजर गये 9 साल
भवन निर्माण निगम लिमिटेड और पुलिस हॉउसिंग कॉरपोरेशन के बीच फेंका-फेंकी में नौ साल गुजर जाने के बाद भी नियामक आयोग का भवन नहीं बन पाया. वर्ष 2009 में नियामक आयोग को राजधानी रांची के हिनू स्थित इंदिरा पैलेस के पीछे एक एकड़ जमीन भवन निर्माण के लिए दी गई थी.
2012 में पुलिस हॉउसिंग कॉरपोरशन को इसके निर्माण की जिम्मेवारी सौंपी गई. बाउंड्री और नक्शा बनाने के लिए 50 लाख रुपये भी दिये गये.
नक्शा के मुताबिक, चार तल्ला भवन का निर्माण किया जाता. इसके लिए 30 करोड़ का इस्टीमेट बनाया गया. इसकी तकनीकी स्वीकृति भी मिल चुकी थी.
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सुपरविजन चार्ज के खेल में फिर फंसा भवन निर्माण
पुलिस हॉउसिंग कॉरपोरेशन ने सुपरविजन चार्ज आठ फीसदी लेने की बात कही थी. जबकि भवन निर्माण विभाग ने सात फीसदी ही सपुरविजन चार्ज लेने की बात कही. इसके बाद सरकार ने 2015 में यह जिम्मेवारी भवन निर्माण निगम लिमिटेड को सौंप दी.
भवन निर्माण निगम लिमिटेड ने जो इस्टीमेट बनाया, उसके मुताबिक भवन दो तल्ला ही होगा, जिसके लिए 15 करोड़ का इस्टीमेट दिया गया है. यह इस्टीमेट 2017 को सरकार को सौंपा गया.
अब फाइल एंपावरमेंट कमेटी के पास
अब भवन निर्माण की फाइल विकास आयुक्त की अध्यक्षता वाली एंपावरमेंट कमेटी के पास है. फिलहाल प्रशासनिक स्वीकृति नहीं मिली है. भवन निर्माण नहीं होने के कारण आयोग का कार्यालय सैनिक भवन और करमटोली स्थित किराये के मकान पर चल रहा है.