नीता शेखर,
रांची: मां शब्द ही ऐसा है यह जिसके बारे मैं जितनी भी बात की जाए वह कम ही है. किसी कवि ने कहा है, “भगवान का दूसरा रूप है मां.
ममता की गहरी झील है मां,
वह घर किसी स्वर्ग से कम नहीं,
जिस घर में भगवान की तरह पूजी जाती है मां।”
मां की ममता जीवन भर एक बच्चे का आधार होती है. किसी भी बच्चे की जिंदगी में सबसे पहले अगर किसी चीज का एहसास होता है तो मां का पल्लू. जब मां के पल्लू में बच्चे का आगमन होता है ऐसा प्रतीत होता है कि मानव को सारे जहां की खुशियां मिल गई हो और वह आराम से उस पल्लू में सो जाता है.
जब हम मां का पल्लू धाम कर चलते थे कितने खुश होते थे मानो सारा डर भय मां के पल्लू में समा गया. जब भी हमें किसी चीज की जरूरत होती तो हम जाकर मां का पल्लू पकड़ लिया करते थे, मां तभी समझ जाया करती थी, जरूर इसको कुछ चाहिए. यह अहसास भी कितना सुकून भरा होता था. जब भी हम दुखी होते मां के पल्लू में सिर डाल कर छुप जाते थे. फिर ऐसा लगता सारा दुख दर्द भूल गए फिर हमें सुकून भरी नींद आ जाया करती थी.
Also Read This: पालघर मॉब लिंचिंग मामला: साधुओं के पास थे 6 लाख रुपए, गायब
पूनम कहे जा रही थी और रोये भी जा रही थी. आज उसकी मां चिरनिंद्रा में चली गई थी. जहां से कोई लौटकर नहीं आता. पूनम सोच रही थी, मां की डांट में भी कितना प्यार होता था अगर वह कभी डांटा करते थी तो बाद में बच्चों को पच्चीस पैसे तुरंत पकड़ा दिया करते थी, जाओ जाकर मूंगफली खा लो. फिर हम भी भूल जाया करते थे मां की उस डांट को. आज मां उड़ चली थी और उसके कटी हुई डोर हमारे हाथ में रह गई थी. आज मां के साथ मां का पल्लू भी छिन गया था .अब हमें कौन अपने पल्लू की छांव में सुलाएगा.
शादी के बाद पूनम दिल्ली आ गई थी. उसकी मां मथुरा में रहा करते थी. पूनम हर दिन अपनी मां से फोन के जरिए बात किया करते थी. वह अपना दुख तकलीफ सब कुछ अपनी मां को बताया करती थी. मां उसे सही रास्ता दिखाती फिर वह बड़े प्यार से अपनी उलझनों को सुलझा लिया करती.
आज वही मां इस दुनिया से जा चुकी थी. पूनम को बार-बार अपनी मां का पल्लू याद आ रहा था. अब कौन अपने पल्लू से हमें छांव देगा, एक बार पूनम को काफी तेज बुखार हो गया. लाख कोशिशों के बाद भी उसका बुखार उतर नहीं रहा था. उस वक्त मां घर पर नहीं थी. सभी लोग कोशिश करके हार गए और परेशान भी हो रहे थे. इसी बीच उसकी मां आई और उन्होंने झट से पूनम को अपने पल्लू में समेट लिया फिर आधे घंटे में ही पूनम का बुखार उतर गया. आज पूनम को अपनी मां का पल्लू का बार-बार ध्यान आ रहा था. वह सोच रही थी. अब मां का पल्लू कहां मिलेगा.
कहते हैं मां के बिना जीना अधूरा लगता है क्योंकि बच्चे के लिए मां को हमेशा ही लगता है कि वह बच्ची है. मां से बड़ा धन कोई नहीं है. मां ममता की वह मूरत है जो अपने बच्चे में जान देती है. कहते हैं जिस घर में मां ना हो वह घर अधूरा ही लगता है. इसलिए मां को प्रेम और करुणा का प्रतीक माना जाता है. मां से बेहतर किसी को भी नहीं माना जा सकता है. उसको बार-बार यही लग रहा था.
“मां तुम क्या गई तुम्हारा पल्लू भी चला गया ,
अब किसके पल्लू में हम सर छुपा कर अपने दुख दर्द बाटेंगे
“मां तुम क्या गई तुम्हारा पल्लू भी चला गया,”