प्रचलित नाम- पियाज/पलाण्डु/ प्याज (Scientific Name – Allium cepa)
प्रयोज्य अंग- पत्र एवं कंद (लाल जातिका)
स्वरूप-लघु गुल्म, शल्कावरित कंद, पत्र पोली नलिका जैसे, पुष्प गोल गुम्मजदार सफेद गुच्छों में होते हैं ।
स्वाद– चरपरा एवं कटु ।
रासायनिक संगठन-इसके कंद में ग्लुटामिल, अर्जीनाइन, सिस्टीन, क्वेरसेटिन, किम्फेरॉल, डायोस्जेनिन, मिथाइल सिस्टीन सॅल्फोक्साईड, प्रोपिल सिस्टीन सल्फोक्साइड तथा प्रोपिल सिस्टीन, सेपोनिन्स तथा शर्करा पाये जाते हैं ।
गुण- उत्तेजक, मूत्रल, कफ निःसारक, कामोद्दीपन ।
उपयोग- प्रवाहिका, अर्श, श्वसनीशोथ, हृदयरोग, आध्मान, रक्त में शर्करा का प्रमाण कम करता है एवं अर्बुदनाशक । इसका उपयोग कामला, गुदभ्रंश, मसूड़ों की सूजन, रात्र्यंध में लाभकारी।
प्याज के बीज सिरका में पीसकर दाद पर लगाने से लाभ होता है।
कंद के रस को सरसों के तेल में मिलाकर आमवातादि, संधि विकार, दाह, कण्डु चर्मरोगों में लाभकारी ।
बच्चों एवं वृद्धों के कफ विकारों में प्याज के रस को मिश्री में मिलाकर चटाया जाता है ।
अर्श में इसके रस को 1-2 तोला मिश्री में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
मसूढ़ों की सूजन तथा शूल में नमक के साथ पिलाते हैं।
इसका रस साधारण गरम कर कर्णशूल में लाभदायक होता है।
इसके कंद सफेद एवं लाल दो प्रकार के होते हैं।
सफेद कंद-बल्य, तीक्ष्ण, वृष्य, गुरु, मधुर, रुचिकर, स्निग्ध, कफकर, घातुवर्धक, निद्राप्रद तथा दीपन है। यह यक्ष्मा, हृदयरोग, वमन, अरुचि, रक्त पित्त, वात पित्त, कफार्श, वातार्श, पसीना, सूजन तथा रक्तदोष का नाश करता है।
लाल कंद-शीतल, स्निग्ध, गुरु, अग्नि दीपक, तीक्ष्ण, मधुर, किंचित् उष्ण, पित्तकर, वृष्य एवं बलकर है।यह कफ, वायु, सूजन, अर्श तथा कृमियों का नाश करता है।
पलाण्डु के बीज-वृष्य तथा दाँत के कृमि एवं प्रमेह का नाश करते हैं।
बच्चों के इक (टिटेनस) अकड़न रोग में इसके सफेद कंद को दबाकर तोड़ने के पश्चात् सुंघाने से लाभ होता है ।
उन्माद रोगों में सफेद कंद का रस निकाल कर नेत्रों में अंजन करने से लाभ होता है।
गरमी के कारण कपाल में दर्द होने पर कंद को तोड़कर सूंघना चाहिए एवं चंदन में कपूर घिसकर इसका कपाल पर लेप करना चाहिये ।
नाक में से रक्त स्राव होने पर कंद के रस का नस्य करने से लाभ होता है।
कालेरा में प्रत्येक 15 मिनट के पश्चात् कंद का रस पिलाते रहना चाहिये । कालेरा रोग की महामारी से बचने के लिये रात्रि भोजन पकाकर कंद के रस में एक चने मात्र में हींग घिसकर उसमें एक माशा सौंफ तथा एक माशा धनिया चूर्ण मिलाकर पिलाने से लाभ होता है ।
बिच्छुदंश में-विच्छु दंश स्थान पर कंद के दो टुकड़े कर अच्छी तरह घिसना चाहिये ।
वीर्य वृद्धि के लिये-कंद का रस मधु में मिलाकर सेवन करना चाहिये।
ततैया दंश में कंद का रस निकालकर अच्छी तरह घिसना चाहिये।
शिशुओं के शीघ्र बढ़ने के लिये बच्चों को गुड़ तथा इसका कंद खिलाने से बच्चे शीघ्र बढ़ते हैं।
प्रवाहिका में (मरोड़ के साथ रक्त आता हो) – कंद को बारीक काट कर उसके टुकड़ों को अच्छी तरह चार से पाँच बार जल में धोकर गद्देदार दही के साथ सेवन कराने से लाभ होता है।
अतिसार में कंद के रस में अफीम मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
नपुंसकता में-सफेद कंद का रस, मधु, अदरक का रस तथा घी इकट्टा कर प्रातःकाल 21 दिन तक पिलाने से पुरुषत्व प्राप्त होता है। या कंद का रस सात माशा, घी तीन माशा, मधु तीन माशा इन सबको इकट्ठा कर प्रतिदिन प्रातः एवं सायं सेवन करना चाहिये तथा रात को 250 मि.ली. गरम दूध में मिश्री मिलाकर दो माह तक पीने से वीर्य में वृद्धि होती है।
कामला रोग में-इसके सफेद कंद, गुड़ एवं उसमें थोड़ी हल्दी मिलाकर प्रातः या सायं सोते समय सेवन करने से लाभ होता है।
जुकाम हुआ हो तो सफेद कंद को काटकर नासिका द्वारा सूंघने से लाभ होता है।
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औषधि प्रयोग से संबंधित कुछ महत्व जानकारी
ENGLISH NAME:- Onion. Hindi-Pyaj
PARTS-USED:- Leaves and Bulb (Red variety).
DESCRIPTION:- A small herb with tunicated bulb, leaves tubular and cylindrical,
Flowers white in head.
TASTE:-Pungent-Acrid.
CHEMICAL CONSTITUENTS- Bulb contains: Glutamyl, Arginin, Cystein, Quercetin, Kaempferol, Diosgenin, Methylcysteine Sulphoxide, Propylcystein, Sulphoxide, Propylcystein, Saponins and Sugars.
ACTIONS: Stimulant, Diuretic, Expectorant, Aphrodisiac, sex stimulant
USED-IN-Dysentery, Piles, Bronchitis, Ischaemic Heat disease, Flattulance, Hypogly caemic, Anti tumour, Alsouseful in Jaundice, Anus prolapse, Gum swelling, Night blindness.