ग्रीष्मऋतु में इसके फल के गूदे का शरबत पीने से लू का असर बिलकुल नहीं होता।
प्रचलित नाम- गोरख इमली (वैज्ञानिक नाम – Adansonia digitata)
इसे गोरक्षी/ पंचपर्णी/शीतफल आदि नामों से भी जाना जाता है।
प्रयोज्य अंग- कांड की छाल, फल तथा पत्ते । स्वरूप-एक विशाल वृक्ष, जिसका तना नीचे से मोटी गोलाई में तथा अग्र की ओर शंक्वाकार, पत्ते संयुक्त, पत्रिका 3-9 की संख्या में, पत्र वृन्त रोमश , पुष्प सफेद एवं बड़े, नरकेसर अगणित, फल लौकी की तरह लम्बे कठोर कवच वाले इसका गूदा खट्टा होता है ।
स्वाद – मधुर- अम्ल ।
रासायनिक संगठन- फल के गूदे में मुक्त टार्टरिक अम्ल, पोटेशियम बाईटारर्टेट होते हैं । छाल एवं पत्तों में चिकना लुआब, प्रचूर मात्रा में होता है। जबकि इसके काण्ड की छाल में कटु स्फटिकमय-एडेन्सोनिन तत्व पाया जाता है ।
गुण-फल का गूदा- शीतल, रुचिकर, स्नेहन, हृदयबल्य, पत्र ग्राही, छाल शीतल, दीपन ग्राही।
उपयोग-कोमल पत्रों के प्रयोग से सूजन तथा दाह ठीक होता है ।
छाल का प्रयोग विषम ज्वर में लाभकारी। फल का गूदा तृषा, प्रवाहिका, अतिसार तथा अतिसार में रुधिर का आना इन रोगों में इसका सेवन लाभकारी होता है।
इसके मूल तथा छाल का क्वाथ गर्मी के रोगों में प्रयोग से लाभ होता है।
इसके तने में से निकलने वाले गोंद का प्रयोग मुखव्रणों में लाभकारी।
इसकी छाल का चूर्ण ज्वर के रोगियों के लिये लाभकारी होता है। इसकी छाल की पुल्टिस गण्ड पर बाँधने से लाभ होता है।
संग्रहणी, अतिसार, पित्त विकार तथा ज्वर में फल के गूदे में फुले हुए खारा के साथ गोली बनाकर सेवन से लाभ होता है।
ग्रीष्मऋतु में इसके फल के गूदे का शरबत पीने से लू का असर बिलकुल नहीं होता।
बच्चों के प्रवाहिका तथा अतिसार में इसके फल के गूदे में अनार के फल के छिलके पीसकर दोनों के स्वरस का सेवन करना चाहिए।
श्वासरोग में इसके फल के गूदे को सुखाकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को सूखे या ताजे अंजीर में भरकर सेवन करने से लाभ होता है।
अम्ल पित्त में इसके फल के गूदे का काढ़ा बनाकर पिलाना चाहिए या इसके गूदे के शरबत में जीरा चूर्ण तथा मिश्री का चूर्ण मिलाकर पिलाना चाहिए।
प्रदर में इसके फल के गूदे का शरबत बनाकर पिलाने से लाभ होता है।
गरमी के कारण होने वाले व्रण एवं सभी प्रकार के जख्मों पर इसके बीजों को जलाकर इसकी राख को मक्खन में मिलाकर इन पर लगाने से लाभ होता है।
मात्रा-छाल का चूर्ण एक से तीन ग्राम । क्वाथ पाँच से दस मि.ली. ।
जानिये और भी वनौषधियों के बारे में :
जनिए अनानास / अन्नानस औषधि का सेवन कब और कैसे : वनौषधि – 8
बेल / बिल्व में हैं कई औषधीय गुण : वनौषधि – 7
मानकंद / महापत्र एक आयुर्वेदिक औषधि : वनौषधि – 6
पियाज / पलाण्डु एक आयुर्वेदिक औषधि : वनौषधि – 5
लहसुन/ लसुन एक आयुर्वेदिक औषधि : वनौषधि – 4
जानिए एलोवेरा / घृतकुमारी के फायदे और उपयोग के तरीके : वनौषधि – 3
रत्ती “एक चमत्कारी औषधि” : वनौषधि – 2
गिलोय “अमृता” एक अमृत : वनौषधि -1
औषधि प्रयोग से संबंधित कुछ महत्व जानकारी
ENGLISH NAME:- Monkey bread Tree/Baobab.
Hindi-Gorakh Emli/Kalpuriksha
PARTS-USED:-Stem Bark, Fruits & Leaves.
DESCRIPTION:- Large tree, trunk with large dimension at the base becoming narrow at the apex. Leaves compound, leaf lets 3-9 with hairy petioles obovate, oblong. Flowers large white, solitary axillory, stamens many. Fruits woody pendulous, oblong amphisarca
pulp is acidic.
TASTE:-Sweet/Acidic.
CHEMICAL CONSTITUENTS- Pulp of Fruit Contains:- Free Tarteric acid, Potassium bitartrate. Leaves Contain Mucilage; Stem bark Contains: Bitter Crystalloid Adansenin.
ACTIONS:-Pulp of Fruit: Cooling, Appitizer, Oily, Heart tonic. Leaves-Astringent; Bark is cooling, Stomachic and Astringent.
USED IN:- Tender leaves are useful in Curing Swellings and Burning sensation. Bark in Malarial fever. Pulp in Thirst, Dysentery, Diarrhoea; it also cures bleeding with Diarrhoea.