राहुल मेहता,
नकुल बहुत ही मेधावी छात्र था. हमेशा वर्ग में प्रथम तीन में ही आता था. उसने माध्यमिक बोर्ड के लिए काफी मेहनत किया था. परिणाम निकला तो घर में सभी बहुत खुश थे. उसे 94.3% अंक प्राप्त हुए थे. परन्तु यह ख़ुशी अगले ही दिन उदासी में बदल गयी. वह टॉप पांच में भी नहीं था. जितनी मुंह, उतनी बात. कोई खुश तो कोई मायूस. परिवार के लिए इतने अंक भी कम नहीं थे, लेकिन फ़ोन के ज़माने में किसे रोका जा सकता था. सभी का ध्यान अंकों पर था, नकुल की मानसिक अवस्था और भावनाओं पर नहीं. खैर उसका नामांकन राजधानी के मनचाहे विद्यालय में हो गया. उसके रहने की व्यवस्था हॉस्टल में कर दी गयी. वह पहली बार परिवार से दूर रह रहा था. थोड़ी चिंता और आशंका थी तो आजादी का इंतजार भी. पर नकुल कुछ ही दिनों में आज़ादी के रोमांच से उब कर खामोश रहने लगा. कभी समय पर खाना खाता, कभी नहीं. पहले टर्म में नंबर भी अपेक्षा से काफी कम आया था.
- नकुल की ऐसी स्थिति क्यों थी?
- क्या यह स्थिति नकुल में भावनात्मक बदलाव के कारण था?
- नकुल के अभिभावकों के लिए उचित कदम क्या होता?
विद्यालय के बाद का जीवन बदलाव से परिपूर्ण होता है. प्लस टू विद्यालय हो या कॉलेज, बदलाव के इस दौर में दबाव, तनाव और अवसाद एक आम समस्या है. बढ़ते प्रतियोगिता के साथ आज तुलनात्मक रूप से कॉलेज के अधिक छात्रों में दबाव और तनाव अवसाद में परिवर्तित हो रहे हैं. अगर समय पर इसकी पहचान कर ली जाये और उचित कदम उठाया जाये तो यह कोई बड़ी समस्या नहीं.
कॉलेज अवसाद (डिप्रेशन) क्या है?
कॉलेज अवसाद एक मनोदशा विकार है जो कम से कम दो सप्ताह या उससे अधिक समय तक उदासी और अरूचि की भावना का कारण बनता है. कॉलेज में छात्रों को अलग चुनौतियों, दबावों और चिंताओं का सामना करना पड़ता है जो भिन्न होने के कारण उन्हें कठिन लग सकता है. नकुल जैसे अनेक किशोर पहली बार घर से रहते हैं. सीमाओं के बावजूद उन्हें खाद्य पदार्थ चुनने की, सोने के समय की और व्यक्तिगत आचरण की स्वतंत्रता होती है. आज के मोबाइल के ज़माने में वे वीडियो गेम या सोशल मीडिया जैसी गतिविधियों पर मनमाफिक समय बिताते हैं. नए दिनचर्या में वे रूममेट्स और नए साथियों के साथ जीवन को समायोजित कर रहे होते हैं. परिस्थिति कोई भी हो कभी-कभी ये परिवर्तन दबाव और अवसाद का कारण बन जाते हैं.
कॉलेज अवसाद को कैसे पहचाने?
कई छात्र कॉलेज के प्रारंभिक दिनों में कभी-कभी दुखी या चिंतित महसूस करते हैं. आमतौर यह सामान्य बात है. परंतु यदि निम्नलिखित लक्षण नजर आने लगते हैं तो हस्तक्षेप आवश्यक हो जाता है.
- उदासी, अशांति, चिंता या बेचैनी
- निराशा या हताशा की भावना
- अत्यधिक गुस्सा या चिड़चिड़ापन
- गतिविधियों, शौक या खेल में अरुचि
- नींद की गड़बड़ी, अनिद्रा या बहुत अधिक नींद
- थकान और ऊर्जा की कमी,
- शारीरिक समस्याएं जैसे पीठ दर्द या सिरदर्द
- भूख में बदलाव- भूख और वजन में कमी या अत्यधिक वृद्धि
- शैक्षणिक प्रदर्शन में कमी
- अपराधबोध की भावनाएं
- परेशान और निरंतर नकारात्मक विचार
कॉलेज अवसाद के प्रमुख कारण
- घर की याद, अकेलापन
- दिनचर्या में बहुत ज्यादा परिवर्तन
- दोस्तों से अलगाव, भावनावों के अभिव्यक्ति में कमी
- आर्थिक दबाव
- शैक्षणिक दबाव
- सोशल मीडिया, हिंसात्मक खेल
- नशापान
- आत्मविश्वास की कमी
अभिभावकों की भूमिका
- अगर आपको लगता है कि आपका बच्चा डिप्रेशन से जूझ रहा है, तो उससे नियमित रूप से बात करें, उसकी समस्याओं को सुनें. तथ्यों के साथ उसके भावनाओं को समझने का प्रयास करें.
- उसके समस्याओं और उलझनों को समझने का प्रयास करें लेकिन समस्याओं पर ज्यादा बात न करें.
- नए व्यवहार के लिए उसे डांटे नहीं, बल्कि दोस्त की तरह समझाएं.
- हमउम्र भाई-बहन को उसका भरोसा जीतने और उसकी भावनाओं को साझा करने के लिए प्रोत्साहित करें.
- एक ही बार में बहुत सी चीजें करने से बचने के लिए प्रोत्साहित करें. उचित समय प्रबंधन विधियों को अपनाने और पौष्टिक भोजन के लिए प्रेरित करें.
- अध्ययन के साथ जीवन प्रसन्नता पूर्वक और मर्यादित मस्ती के साथ जीने के लिए प्रोत्साहित करें.
- नियमित योग, व्यायाम और खेल-कूद, आउटडोर गतिविधि के लिए प्रोत्साहित करें.
- बहुत ज्यादा उपदेश देने के बजाय उसके सकारात्मक गतिविधियों को पहचान कर उसकी तारीफ करें.
- अप्रत्यक्ष रूप से पुराने सकारात्मक प्रयासों की याद दिला कर प्रेरित करें.
- रात की अच्छी नींद के महत्व पर जोर दें. बहुत कम नींद अवसाद में योगदान कर सकती है. रात में सोशल मीडिया के सीमित उपयोग की सलाह दें.
- अनेक विद्यालयों में परामर्शी होते हैं, उनसे बात करें. अगर उसका कोई पुराना दोस्त है तो उससे मदद लें.
- यदि समस्या ज्यादा गंभीर प्रतीत होती है तो विशेषज्ञ से संपर्क करें.
सावधानियां
- कभी-कभी किशोर दबाव के कारकों का सामना करने के बजाय उनसे भागने का प्रयास करते हैं, जैसे- मुश्किल विषय का क्लास या किसी विशेष शिक्षक के क्लास में नहीं जाना, देर तक सोना आदि.
- नशापान का सेवन प्रारंभ करना.
- कार्य को अंतिम समय तक टालना.
- यदि वे दुखात्मक फिल्मों में रूचि लेते हैं तो सचेत हो जाएं.
- अवसाद को स्वीकारना और इसके निदान के लिए मदद माँगना अत्यंत कठिन होता है. सकारात्मक प्रतिफल के लिए इसे बहुत ज्यादा टालना हितकर नहीं होता.
यदि किशोर या किशोरी विद्यालय के परिणाम से ही अवसादग्रस्त हैं तो सुनिश्चित करें कि वे घर करीब कॉलेज चुने.
उसके व्यवहारों पर नजर बनाये रखें समस्या के शुरुआती संकेत पर प्रयास प्रारंभ कर दें.
परवरिश सीजन – 1
बच्चों की बेहतर पालन-पोषण और अभिभावकों की जिम्मेदारियां (परवरिश -1)
बेहतर पालन-पोषण के लिए सकारात्मक सामाजिक नियम अनिवार्य और महत्वपूर्ण हैं (परवरिश-2)
अभिभावक – बाल संवाद (परवरिश-5)
बच्चे दुर्व्यवहार क्यों करते हैं? (परवरिश-8)
मर्यादा निर्धारित करना, (परवरिश-9)
बच्चों को अनुशासित करने के सकारात्मक तरीके (परवरिश-10)
भावनाओं पर नियंत्रण (परवरिश-12)
बच्चों की चिंतन प्रक्रिया और व्यवहार (परवरिश-13)
टालमटोल (बाल शिथिलता) और सफलता (परवरिश-14)
नशापान: प्रयोग से लत तक (परवरिश-15)
छेड़-छाड़ निवारण में अभिभावकों की भूमिका (परवरिश-16)
बच्चों का प्रेरणास्रोत (परवरिश-17)
बच्चों के उद्वेग का प्रबंधन (परवरिश-18)
बच्चों में समानता का भाव विकसित करना (परवरिश-19)
स्थानीय पोषक खाद्य पदार्थ (परवरिश-21)
आपदा के समय बच्चों की परवरिश (परवरिश-22)
परवरिश सीजन – 2
विद्यालय के बाद का जीवन और अवसाद (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-01)
किशोरों की थकान और निंद्रा (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-02)
दोषारोपण बनाम समाधान (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-03)
किशोरों में आत्महत्या की प्रवृति (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-04)
पितृसत्ता और किशोरियों की परवरिश (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-05)
किशोर-किशोरियों में शारीरिक परिवर्तन (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-06)
“आंचल” परवरिश मार्गदर्शिका’ हर अभिभावक के लिए अपरिहार्य
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