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बच्चों के उद्वेग का प्रबंधन (परवरिश-18)

राहुल मेहता

रांची: प्रकाश सुबह से तीन बार शौचालय जा चुका था. वह कुछ बैचैन सा था. हल्का सिर दर्द और पेट दर्द के बारे में जान कर मां भी बैचैन हो गयी. आनन-फानन में उसे पड़ोस के डॉक्टर के पास ले जाया गया. वहां मामला कुछ और निकला. कोरोना के कारण अनेक विद्यालयों के रिजल्ट ऑनलाइन जारी किये जा रहे थे. प्रकाश का भी रिजल्ट आज निकलने वाला था. ये लक्षण किसी बीमारी के नहीं बल्कि रिजल्ट के चिंता का परिणाम था. चिंता, व्याकुलता या उद्वेग जीवन का एक हिस्सा है. कोई व्यक्ति इससे अछूता नहीं. परन्तु इसकी तीव्रता और गंभीरता इस बात पर निर्भर करती है कि व्यक्ति इनसे भागते हैं या इनका सामना करते हैं.

समस्या पर त्वरित प्रतिक्रिया एवं उद्वेग

समस्या जीवन का एक अहम अंग है. यह जीवन-पर्यंत बना रहता है. केवल इसकी प्रकृति और तीव्रता बदलती रहती  है. किसी भी समस्या के उद्भेदन एवं उसके संभावना पर प्रतिक्रिया स्वाभाविक है. बच्चों को समस्यायों एवं विकट परिस्थिति का बिना विचलित हुए धैर्यपूर्वक सामना करना सिखाया जा सकता है. यह उचित निर्णय एवं समस्या के समाधान में तो सहायक होता ही है, कालांतर में उनके दीर्घ-कालिक सफलता में भी योगदान देता है. विपत्ति  अभिभावकों को एक अवसर भी देती है. वे बच्चों को उद्वेग या व्याकुलता (एंग्जायटी) के बेहतर प्रबंधन हेतु तैयार कर सकते हैं. उद्वेग यदि गंभीर समस्या बन जाती है तो, इसके कारणों की पहचान कर उसका समाधान संभव है.

उद्वेग के लक्षण

बच्चों में उद्वेग के निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं-

  • सिर दर्द, पेट दर्द, पेट ममोड़ना, डायरिया
  • उल्टी, जी मिचलाना, पसीना आना, नींद नहीं आना
  • धड़कन तेज होना, सांस फूलना, शरीर थरथराना, चिड़चिड़ापन आदि

बच्चों के उद्वेग प्रबंधन में अभिभावकों की भूमिका   

चिंता का इलाज डर को दूर करने में नहीं, अपितु अनजाने डर या भय के प्रबंधन और अनिश्चितता को सहन करने में है. कुछ अभिभावक बच्चों के भय के कारण का निराकरण कर देते हैं. इस परिस्थिति में बच्चे को तत्कालिक लाभ तो होता है पर वे इस भय और अनिश्चितता का सामना करने का आवश्यक जीवन कौशल विकसित नहीं कर पाते, जो एक प्रकार से उनके लिए टीकाकरण सा होता है. बहुत अधिक आश्वासन भी लाभकारी नहीं होता.

अभिभावाक बच्चों के लिए प्रेरणा श्रोत होते हैं. अतः वर्तमान परिस्थिति का धैर्यपूर्वक सामना करें. सावधानी बरतना  एवं संभावित खतरों पर चर्चा करना जायज है परंतु आपके मनोभावों, आर्थिक चिंता, झुंझलाहट बच्चों का भला नहीं कर सकते न ही इससे किसी समस्या का समाधान संभव है.

बच्चों को उद्वेग प्रबंधन सिखाना   

चिंता या उद्वेग का कारण तत्कालिक भी हो सकते हैं और दीर्घकालिक भी. तत्कालिक कारणों का प्रबंधन

  • गहरी स्वांस लें, आंख जोर से से बंद कर कुछ पल शांत रहें
  • आपने आप से कुछ सवाल करें
  • अपने चेहरे और हाथों का हल्का मालिश करें
  • कोई गीत गुनगुनाएं

चिंता या उद्वेग के प्रबंधन के दीर्घकालिक उपाय 

  • नियमित योगाभ्यास करना
  • नियमित व्यायाम करना, खुले में घूमना
  • भरपूर नींद लेना, बिस्तर पर जाने के बाद गंभीर विषय के बारे में नहीं सोचना
  • दोस्तों, परिवार के सदस्यों के साथ बात करन, संभव हो तो समस्या साझा करना
  • घर के कार्यों, बागवानी या नियमित दिनचर्या में व्यस्त रहना
  • नकारात्मक परिणाम के बजाय सकारात्माक परिणाम के बारे में सोचना.

परवरिश सीजन – 1

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बेहतर पालन-पोषण के लिए सकारात्मक सामाजिक नियम अनिवार्य और महत्वपूर्ण हैं (परवरिश-2)

पालन-पोषण की शैली (परवरिश-3)

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भावनाओं पर नियंत्रण (परवरिश-12)

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टालमटोल (बाल शिथिलता) और सफलता (परवरिश-14)

नशापान: प्रयोग से लत तक (परवरिश-15)

छेड़-छाड़ निवारण में अभिभावकों की भूमिका (परवरिश-16)

बच्चों का प्रेरणास्रोत (परवरिश-17)

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बच्चों की निगरानी (परवरिश-20)

स्थानीय पोषक खाद्य पदार्थ (परवरिश-21)

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परवरिश सीजन – 2

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दोषारोपण बनाम समाधान (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-03)

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पितृसत्ता और किशोरियों की परवरिश (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-05)

किशोर-किशोरियों में शारीरिक परिवर्तन (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-06)

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