राहुल मेहता,
पल्लवी सबकी लाड़ली थी. घर हो या बाहर उसने कभी किसी को शिकायत का मौका नहीं दिया, सिवाय दादाजी के. दादाजी भी यूं तो उसके व्यवहार और शैक्षणिक प्रदर्शन से काफी खुश रहते थे, उन्हें शिकायत थी तो बस पल्लवी के दिनचर्या से. उन्हें पल्लवी का देर रात तक जागना और देर से उठना बिलकुल नहीं भाता था. उन्हें लगता था कि पल्लवी की यह दिनचर्या उसके थकान और कमजोरी का कारण है. उन्होंने पल्लवी को अनेक बार समझाने का प्रयास भी किया. परन्तु हर बार सवाल रुपी एक ही जवाब मिलता- दो बजे के पहले नींद ही नहीं आती तो क्या करूं? दादा- पोती के वार्तालाप में माता-पिता भी शामिल हो जाते, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकलता.
- क्या यह कहानी आपके घर की भी है?
- क्या दादा जी गलत थे या पल्लवी गलत थी?
- यह सिर्फ पल्लवी की एक आदत थी या कुछ और?
किशोरावस्था के दौरान सोने और जागने दोनों के लिए जैविक नींद चक्र थोड़ा आगे घिसक जाता है, जो स्लीप फेज डिले के रूप में जाना जाता है. फलस्वरूप किशोरों का साधारणतः 11.00 बजे के बाद सोना स्वाभाविक हो जाता है. थकान और तरोताजा महसूस करने के लिए लगभग छ: से आठ घंटे की नियमित नींद आवश्य होती है. यदि कभी किसी को तीन-चार घंटे देर तक जागना पड़ता है तो उसकी भरपाई दिन में तीन-चार घंटे ज्यादा सोकर नहीं की जा सकती. ऐसा नींद चक्र और शरीर के आंतरिक घड़ी के कारण होता है.
नींद चक्र:
व्यक्ति के नींद को प्रभावित करने वाले कारक मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं, बाहरी कारण और आंतरिक कारक.
बाहरी कारक: सामाजिक, शैक्षणिक, पर्यावरणीय आदि जो नींद के आदत के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
आंतरिक कारक: आंतरिक रूप से होने वाली जैविक प्रक्रियाएं, नींद चक्र प्रमुख आंतरिक कारक है. प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में एक आंतरिक घड़ी होती है जो शरीर के तापमान, नींद के चक्र, भूख और हार्मोनल परिवर्तनों को प्रभावित करती है. 24 घंटे के इस चक्र का पालन करने वाली जैविक और मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं को सर्कैडियन रिदम कहा जाता है. कोई कब और कितना सोता है यह इस रिदम या लय द्वारा प्रभावित होती है. सोने के समय और प्रकाश के सामंजस्य से यह नींद चक्र परिवर्तित हो जाती है और क्रमश: व्यक्ति उसका आदि हो जाता है. अनेक किशोर यदि पारंपरिक रूप से प्रातः काल उठते हैं तो अनेक देर रात तक अध्ययन करते हैं और देर से उठते हैं. इसमें समस्या तब होती है जब यह चक्र बाधित होती है. अनेक कारणों से दिन में नींद के बाधित होने की संभावना ज्यादा होती है.
होमियोस्टैसिस प्रणाली दूसरी आंतरिक कारक है जो नींद और जागने के संतुलन को प्रभावित करती है. इस प्रणाली के कारण जब नियमित नींद बाधित होती है तो उसकी भरपाई के लिए अधिक नींद की आवश्यकता होती है. इस दरमियाँ व्यक्ति तरोताजा महसूस नहीं करता और उसे थकान लगती है.
बहुत कम नींद
अधिकांश किशोरों को रात में लगभग छ: से आठ से घंटे की नींद की आवश्यकता होती है. लेकिन कुछ किशोर नियमित रूप से अथवा पर्याप्त नहीं सोते हैं. कभी-कभी विभिन्न आंतरिक और बाहरी कारणों से नींद नहीं आती या बीच में नींद टूट जाती है. थकान, चिंता, भय, खर्राटे, बाहरी खलल, इसके प्रमुख कारण होते हैं. पैर में दर्द, एकाधिक बार शौचालय जाना, मच्छर और गैस की समस्या भी किशोरों में अपर्याप्त नींद का कारण होते हैं.
गहरी नींद का अभाव :
अनेक बार नींद तो आती है लेकिन बहुत गहरी नहीं. किसी सपने या मांसपेशियों में खिंचाव के कारण गहरी नींद नहीं आ पाती. झगड़ा या पीछा किये जाने वाले सपना के कारण, बड़बड़ाना या हाथ-पैर मारने के कारण भी नींद बाधित होती है. यदि यह कभी-कभार होती है तो ठीक है, अन्यथा विशेषज्ञ के परामर्श की आवश्यकता अपरिहार्य हो जाती है.
बहुत ज्यादा नींद:
दिन में अत्यधिक नींद आना या नींद नहीं खुलना भी एक समस्या का संकेत हो सकता है. अक्सर यह दवा के साइड इफेक्ट, अवसाद, अतिसक्रियता आदि के कारण होता है.
अनियमित नींद और अभिभावकों की भूमिका
यदि किशोर पर्याप्त नींद नहीं ले पा रहा है या उसके सोने का समय नियमित नहीं है तो अभिभावक निम्न प्रयास कर सकते हैं :
- समय-सारणी तय करें: एक समय-सारणी तय करें और सोने तथा जगाने का समय तय करें. देर रात के गतिविधियों पर अंकुश लगाएं.
- झपकी: किशोर को यदि दिन में सोने की आदत नहीं भी है तो आधा घंटे की झपकी भी उसे तरोताजा कर सकती है.
- मन की शांति: मन की शांति के लिए रात को विवादित मुद्दे पर सोशल मीडिया में चर्चा या फिर कठिन सवालों का हल खोजना उचित नहीं होता. सोने समय किताब पढ़ने की आदत भी प्रोत्साहित की जा सकती है.
- टीवी देखने का समय: टीवी और मोबाइल के उपयोग की समय भी तय करें. आज के डिजिटल युग में इंटरनेट पर नियंत्रण कठिन है फिर किशोर को प्रोत्साहित करें कि वे इंटरनेट आधारित अध्ययन तय समय के अंदर कर लें.
- भोजन का समय: सोने के समय से कम से कम दो घंटा पूर्व भोजन करना सहायक होता है. पानी सुबह और शाम तक ज्यादा पियें. सोने के दो घंटा पहले तक ज्यादा पानी नहीं पियें.
- जैविक घड़ी की गड़बड़ी: सोने के समय को समायोजित कर सोने के चक्र को परिवर्तित किया जा सकता है. इसके लिए जरुरी है कि सोने और उठाने का समय तय करें. तय समय से पहले यदि नींद आने पर या थकान महसूस होने पर भी झपकी न लें. नियमित रूप से एक ही समय पर सोएं और उठें. यह भी सुनिश्चित करें मच्छरदानी ठीक से लगा है, बिस्तर आरामदायक है, तकिया ज्यादा मोटा नहीं है, कमरे में अंधेरा है, और कमरे का तापमान बहुत गर्म या ठंडा नहीं है.
अपर्याप्त नींद सरल प्रतीत होती है, लेकिन इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं. थके हुए किशोरों को ध्यान केंद्रित करने और सीखने में कठिनाई होती है. बहुत कम नींद व्यवहार संबंधी समस्याओं को जन्म दे सकती है.
परवरिश सीजन – 1
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स्थानीय पोषक खाद्य पदार्थ (परवरिश-21)
आपदा के समय बच्चों की परवरिश (परवरिश-22)
परवरिश सीजन – 2
विद्यालय के बाद का जीवन और अवसाद (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-01)
किशोरों की थकान और निंद्रा (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-02)
दोषारोपण बनाम समाधान (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-03)
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पितृसत्ता और किशोरियों की परवरिश (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-05)
किशोर-किशोरियों में शारीरिक परिवर्तन (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-06)
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