राहुल मेहता,
पिछली कड़ी में हम रितिका की दुखद कहानी से रूबरू हुए थे. नवीं कक्षा में अनुतीर्ण होना, विद्यालय परिवर्तन का सदमा और अभिभावकों का ताना रूपी गोचर(विसिबल) कारणों से रितिका ने आत्महत्या जैसे विकल्प को अपनाया.
- लेकिन क्या ये गोचर कारण ही वास्तविक कारण थे?
- क्या इस घटना को रोका जा सकता था? यदि हां तो कैसे?
- आत्महत्या की प्रवृति की पहचान कैसे की जा सकती है?
आत्महत्या का जोखिम सभी लिंग, आयु और जाति के लोग में होती है. यह एक जटिल आत्मघाती व्यवहार है और इसके अनेकानेक कारण हो सकते हैं. फिर भी अध्ययन बताते हैं कि पुरुषों में और किशोरों में तुलनात्मक रूप से आत्महत्या की दर ज्यादा होती है. परामर्शी पल्लवी मिश्रा ने साझा किया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 15 से 29 आयु वर्ग में आत्महत्या, मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है.
आत्महत्या का निवारण
किशोरों की आत्महत्या जोखिम के कारकों और चेतावनी के संकेतों को पहचान कर रोकी जा सकती है. यदि प्रयास किया जाये तो इनकी पहचान प्रारंभिक अवस्था में ही संभव है. इसके लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, अपने बच्चे को समझना. सभी बच्चे और उनका व्यवहार एक जैसा नहीं होता. अतः बच्चे को समझना भी खतरे को सीमित करता है.
किशोरों की आत्महत्या या इसकी कोशिश में उनकी मानसिक अवस्था की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. अधिकतर किशोर बेहतर परवरिश के कारण किशोरावस्था में होने वाले तनाव, विफलता, अस्वीकृति, उपेक्षा, अपमान आदि का सामना सफलतापूर्वक कर लेते हैं, लेकिन कुछ इसमें असफल भी होते हैं. उन्हें इन समस्याओं का समाधान या विकल्प नजर नहीं आता. परिस्थिति और मानसिक अवस्था के कारण अनेक किशोर यह आवेगपूर्ण राह अपना लेते हैं.
किशोरों के आत्महत्या के संभावित कारक क्या हैं?
आत्महत्या अमूमन आवेग में आकर या मानसिक अवस्था के कारण होती है. यदि बच्चे का स्वभाव मूलतः आवेगी है तो विशेष सावधानी की जरुरत होती है. एक किशोर निम्न परिस्थितियों में आत्महत्या के बारे में सोच सकता है-
- अवसाद या अन्य मानसिक विकार
- मूड डिसऑर्डर या आत्मघाती व्यवहार का पारिवारिक इतिहास
- किशोर का, परिवार के सदस्य या दोस्त द्वारा आत्महत्या का इतिहास
- करीबी दोस्तों या परिवार के सदस्यों के साथ संघर्ष, अलगाव या धोखा
- शारीरिक या यौन शोषण, पारिवारिक हिंसा
- नशापान की लत
- लोकलज्जा का भय, सदमा
- शारीरिक या चिकित्सीय मुद्दे जैसे गर्भवती होना
- भयादोहन, आर्थिक विपत्ति आदि
किशोरों के आत्महत्या के संभावित संकेत या लक्षण
- मौत या आत्महत्या के बारे में बात करना या लिखना
- समस्या का समाधान नहीं होने की बात करना
- बड़ी ग्लानि या लज्जा की बात करना
- निराशाजनक महसूस करने या जीने का कोई कारण न होने के बारे में बात करना
- सामाजिक संपर्कों से दूरी बनाना, दूसरों पर बोझ बनने की बात करना
- जोखिम भरा या आत्म-विनाशकारी काम करना, क्रोध दिखाना या बदला लेने की बात करना
- किसी समस्या को स्थाई रूप से ख़त्म करने की बात करना, दोस्तों और परिवार को अलविदा कहना
- मिजाज में परिवर्तन, चरम मिजाज को प्रदर्शित करना, अचानक बहुत दुखी से बहुत शांत या खुश हो जाना
- खाने या सोने के पैटर्न सहित सामान्य दिनचर्या में परिवर्तन
- असहनीय दर्द (भावनात्मक दर्द या शारीरिक दर्द)
- अत्यधिक नशा का सेवन करना
- दुखी रहना, चिंतित या उत्तेजित होना
- मृत्यु संबंधी फिल्म देखना, पुस्तक या ऑनलाइन कंटेंट पढ़ना, खुद को मारने का तरीका ढूंढना
- अवांछित परिणाम मिलने पर गुमसुम हो जाना
अभिभावकों की भूमिका
अगर आपको लगता है कि आपका किशोर खतरे में है या आपको संदेह है कि वह आत्महत्या के बारे में सोच रहा है, तो उससे बात करें. उसकी भावनाओं को सुने. उसकी समस्याओं को समझने का प्रयास करें. समस्या तब विकराल हो जाती है जब व्यक्ति के मनो-मष्तिष्क में यह छाये रहती है. व्यक्ति इसके बारे में किसी से बात नहीं कर पाता, अपने समस्याओं को अपने किसी विश्वासी के साथ साझा नहीं कर पाता. अतः प्यार से अपने बच्चे को आश्वस्त करें और उसका विश्वासी बने.
असफलता, अलगाव, निराशा, समस्या, चिंता आदि जीवन का हिस्सा हैं. दिनचर्या के छोटी-छोटी घटनाओं से बच्चों को इनका सामना करना सिखाएं. किशोर उस समय टूट जाते हैं जब वे खुद को अकेला और असहाय पाते हैं. यदि उन्हें लगता है कि कोई है जो हर कदम उसके साथ है तो हौसला आसानी से नहीं टूटता. अतः अपने किशोर का हमदम बने. ज्यादा समस्या होने पर मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिक की सहायता लें. निवारण में निम्न कदम लाभकारी होते हैं.
- कठिन समय निकालें: कोई भी समस्या या इसकी तीव्रता स्थाई नहीं होती. समस्या के बाद के कुछ पल या दिन महत्वपूर्ण होते हैं. अतः इस दौरान विशेष सावधानी बरते.
- एकांत सीमित करें: प्रयास करे के निजता का उल्लंघन किये बिना किशोर का एकांत सीमित किया जा सके.
- निरंतर ध्यान बनायें रखें : यदि किशोर में आत्महत्या संबंधी कोई संकेत मिलता है तो इसे गंभीरता से लें.
- अवसाद या चिंता का निदान: यदि किशोर उदास, चिंतित या संघर्ष करता हुआ नजर आता है तो कारण का पता लगायें, उसकी मदद करें.
- अलगाव को हतोत्साहित करना: परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने के लिए प्रोत्साहित करें.
- स्वस्थ जीवन शैली को प्रोत्साहित करें: योग, पौष्टिक और समयबद्ध भोजन, व्यायाम, नियमित नींद आदि के लिए मदद करें.
- सुरक्षित रखें: जहर, धारदार हथियार, नींद की गोली आदि से दूर रखें.
- दोस्तों से संपर्क: दोस्त आत्महत्या की चेतावनी के संकेतों को पहचानने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होते हैं. अतः संकेत मिलने पर किशोर के दोस्तों से संपर्क बनाये रखें.
- किसी से बोन्डिंग या जीवन का उद्देश्य प्रदान करना: “हम जी कर क्या करेंगे, किसके लिए जिए” आदि मनोभाव को दूर करना, प्रेरणादायक उदाहरणों से हौसला बढ़ाएं. साथ मिल कर फिर से प्रयास के लिए प्रेरित करें. उसके सर्वाधिक प्यारे व्यक्ति पर उसके उपस्थिति का महत्व बार-बार याद दिलाएं.
किशोरों को महसूस कराएं- जीवन बहुमूल्य है और हर समस्या का समाधान है. आत्महत्या कोई समाधान नहीं बल्कि एक अस्थायी समस्या पर एक स्थायी और गलत प्रतिक्रिया है.
परवरिश सीजन – 1
बच्चों की बेहतर पालन-पोषण और अभिभावकों की जिम्मेदारियां (परवरिश -1)
बेहतर पालन-पोषण के लिए सकारात्मक सामाजिक नियम अनिवार्य और महत्वपूर्ण हैं (परवरिश-2)
अभिभावक – बाल संवाद (परवरिश-5)
बच्चे दुर्व्यवहार क्यों करते हैं? (परवरिश-8)
मर्यादा निर्धारित करना, (परवरिश-9)
बच्चों को अनुशासित करने के सकारात्मक तरीके (परवरिश-10)
भावनाओं पर नियंत्रण (परवरिश-12)
बच्चों की चिंतन प्रक्रिया और व्यवहार (परवरिश-13)
टालमटोल (बाल शिथिलता) और सफलता (परवरिश-14)
नशापान: प्रयोग से लत तक (परवरिश-15)
छेड़-छाड़ निवारण में अभिभावकों की भूमिका (परवरिश-16)
बच्चों का प्रेरणास्रोत (परवरिश-17)
बच्चों के उद्वेग का प्रबंधन (परवरिश-18)
बच्चों में समानता का भाव विकसित करना (परवरिश-19)
स्थानीय पोषक खाद्य पदार्थ (परवरिश-21)
आपदा के समय बच्चों की परवरिश (परवरिश-22)
परवरिश सीजन – 2
विद्यालय के बाद का जीवन और अवसाद (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-01)
किशोरों की थकान और निंद्रा (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-02)
दोषारोपण बनाम समाधान (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-03)
किशोरों में आत्महत्या की प्रवृति (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-04)
पितृसत्ता और किशोरियों की परवरिश (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-05)
किशोर-किशोरियों में शारीरिक परिवर्तन (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-06)
“आंचल” परवरिश मार्गदर्शिका’ हर अभिभावक के लिए अपरिहार्य
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