अकरकरा में कामेच्छा को बढ़ाने वाले गुण होते हैं। पुरुषों के लिंग विकारों में प्रयोज्य।
प्रचलित नाम- अकरकरा
वैज्ञानिक नाम – Anacyclus pyrethrum
प्रयोज्य अंग-मूल, पत्र एवं पुष्प ।
स्वरूप-चिरस्थायी सीधे किन्तु झुके हुए गुल्म, पत्ते दिपक्षवत् संयुक्त, पुष्प पीले रंग के जी मुंडक में होते हैं।
स्वाद – तिक्त ।
रासायनिक संगठन इस वनस्पति में एलकलॉयड्स, प्रोटीन्स शर्करा तथा उड़नशील तैल, एल्युमिनियम लोह, पोटेशियम, मेग्नेशियम, पोलीएसेटीलिनिक यौगिक, पैलीटोरीन, एनासायकलिन, एनेट्रायीन, हाइड्रो-कार्बोलिनिक, इन्युलिन, सेसामीन, टायरामीनऐमीड्स। गुण- लाल प्रषेवक, उत्तेजक, निद्राजनक, कीटाणुन ।
अकरकरा औषधीय गुणों से भरपूर भारतीय पौधा है जिसका उपयोग आयुर्वेदिक, यूनानी और अन्य जड़ी-बूटी आधारित चिकित्सा पद्धतियों में पुरुषों के रोग, सर्दी-जुकाम, दांतों के दर्द और पायरिया के इलाज में होता है। अकरकरा में कामेच्छा को बढ़ाने वाले गुण होते हैं। इससे शारीरिक शक्ति भी बढ़ती है।
उपयोगः- दंतशूल, पक्षाघात, आमवात,
अपस्मार एवं पुरुषों के लिंग विकारों में प्रयोज्य । अपस्मार में इसका चूर्ण मधु के साथ सेवन से लाभ होता है।
दंत शूल में- अकरकरा तथा कंट सरैया सम भाग में मिलाकर पीस कर इसको दांत के बीच में रखने से लाभ होता है । इसके मूल का उपयोग टूथपेस्ट बनाने में किया जाता है ।
मूत्राश्मरी-अकरकरा, गोक्षुर मूल, तुलसी का रस, पाषाण मेद, एरण्ड का मूल, पिप्पली, मुलैठी, निर्गुण्डी, लौंग, सोंठ इन सबका क्वाथ बनाकर इसमें छोटी इलायची का चूर्ण मिलाकर, सात दिन तक सेवन से बड़ी से बड़ी अश्मरी मूत्र मार्ग द्वारा बाहर निकल जायेगी। अकरकरादि चूर्ण या अमृत प्रभाचूर्ण के उपयोग से मंदाग्नि, अरुचि, खाँसी, श्वासरोग, प्रतिश्याय एवं उन्माद दूर होता है।
अमृत प्रभाचूर्ण-इसके लिये अकरकरा, सेंधव नमक, चित्रा, ऑवला, काली मिर्च, पिप्पली, अजवायन, हरड़ इन सबका एक-एक भाग तथा सोंठ दो भाग इन सबको मिलाकर चूर्ण बनाने के पश्चात् इसको विजोरा के रस की भावना देकर चूर्ण या गोली बनाई जाती है। वैदिक शास्त्र में इसको अमृत प्रभा या अकरकरादि चूर्ण कहते हैं ।
अकरकरा चूर्ण-इसका बारीक चूर्ण सूंघने से बंद नासिका का स्वर खुलता है।
अकरकरा को मधु के साथ चबाने से पक्षाघात एवं आँखों में अंधेरा छाने जैसे रोगों में लाभकारी।
फिरंग रोग में शुद्ध पारद आधा तोला, खदिर सार आधा तोला, अक्करकरा एक तोला, मधु डेढ़ तोला इन सबको मिलाकर इन की सात गोलियाँ बना लो । रोगी को प्रतिदिन एक गोली जल के साथ खाने से लाभ होता है। नमक तथा खट्टे पदार्थ का सेवन वर्जित है। पीनस तथा प्रतिश्याय में-इसके चूर्ण का नस्य लेने से लाभ होता है ।
न्युरालजिक शिरःशूल तथा कृमि जन्य दंत रोग में- इसके अर्क (टिंक्रचर) के प्रयोग से शूल का प्रशमन होता है। इसको बारीक पीसकर महुए के तेल में मिलाकर मालिश करने से पक्षाघात में लाभ होता है ।
श्वित्र रोग में इसके पत्रों के स्वरस – को सफेद दागों पर लगाने से श्वित्र रोग नष्ट होता है।
मात्रा- 1/2-1 ग्राम ।
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औषधि प्रयोग से संबंधित कुछ महत्व जानकारी
ENGLISH NAME:- Spanish Pellitory. Hindi – Akarkara PARTS-USED:- Roots, Leaves and Flowers.
DESCRIPTION:- A perennial procumbent herb, leaves compound bipinnatisect; flowers yellow in heads (Capitulum).
TASTE:-Bitter.
CHEMICAL CONSTITUENTS- Plant Contains: Alkaloids, Protein, Sugars and Volatile Oil, Aluminium, Iron, Potassium, Magnessium, Polyacetylenic Compounds, Pellitorine, Anacyclin, Enetriyne, Hydrocarbolin, Inulin, Sesamin, Tyramineamides. ACTIONS:- Silagogue, Stimulant, Sedative, Antibacterial Acrid.
USED IN:-Toothache, Paralysis, Rheumatism, Epilepsy and in Sexual disordes in males.