राहुल मेहता
रांची: प्रकाश को एक प्रश्न का उत्तर समझ में नहीं आ रहा था. वह पिताजी के पास गया. पिताजी फोन पर बात कर रहे थे. उन्होंने उसकी बात आधी सुनने का बाद कहा – “इस प्रश्न को छोड़ दो, बाद में बता दूंगा. प्रकाश के लिए उत्तर नया नहीं था”. पिछली बार हमने उत्तम अभिभावक- बाल संवाद पर चर्चा की थी. जब कोई आपकी बात नहीं सुनता तो आपको कैसा लगता है ? अतः यह सोचने के लिए कुछ समय निकालें कि आप बच्चों से कैसे बात करते हैं ?
- क्या आप बोलते समय बच्चे को देखते हैं ?
- क्या आप ध्यान से सुनते हैं और उस समय अन्य काम नहीं करते ?
- क्या आप अक्सर कहते हैं कि आप व्यस्त हैं, बाद में बात करेंगे ?
उत्तम श्रवण कौशल:
संवाद, परवरिश का एक अहम हिस्सा है और अच्छे संवाद के लिए अच्छी श्रवण कौशल आवश्यक है. सुनते समय शरीरिक भाषा, बैठने का तरीका, भाव आदि भी अहम भूमिका निभाते हैं. अच्छा श्रवण कौशल न केवल बच्चे के विचारों को स्पष्टतः समझने में मददगार होता है और बच्चों को बेहतर और सम्मानपूर्वक संवाद करने का तरीका सिखाता है अपितु अभिभावक और बच्चे के बीच मधुर रिश्ता भी बनाता है.
अच्छे श्रवण के लिए:
- अन्य काम करना बंद करें; बस सुने.
- यदि संभव हो, तो बच्चे के समान स्तर पर बैठें.
- थोड़ा सा आगे झुकें. समझे कि बच्चा क्या कह रहा है.
- हामी भरें, अपना सिर हिलाएं. नजर मिला कर बात करें.
- बच्चे को बाधित न करें. जरुरी हो तो स्पष्टीकरण हेतु प्रश्न पूछें.
- मधुर आवाज में अपनी बात कहें. बच्चे से पूछें कि क्या कोई सवाल है.
- अंत में चर्चा को सारांशित करें.
- जो भी निर्णय किए गए थे, उन पर प्रकाश डालें.
भावनाओं को नियंत्रित करने में सहायक:
बच्चों की बात सुनने से उनका मन हल्का हो जाता है और वे अपने काम में लग जाते हैं. परन्तु यदि भावनायें बाहर नहीं आती तो बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है. कभी- कभी बच्चे नकारात्मक विचार प्रक्रिया में चले जाते हैं, और केवल रिश्तों को नकारात्मक दृष्टिकोण से देखने लगते हैं.
- भावनात्मक मुद्दा होने पर सुविधाजनक और पर्याप्त समय निकाल कर ही बच्चे से संवाद प्रारंभ करें.
- यदि आवश्यक हो तो उन्हें भरोसा दिलाएं कि आप उनकी निजता का सम्मान करते हैं.
- उनकी भावनाओं और धारणाओं को स्वीकार करें.
- हो सकता है आप उनसे सहमत न हों पर वे उसके लिए वास्तविक हैं. अतः तथष्ट रहें और अपनी भावनाओं को अपने बच्चे से अलग रखें.
- भावनाएं अक्सर स्थाई नहीं होती हैं. अतः बच्चे के नाराजगी के समय तुरंत प्रतिक्रिया के बजाय उनका विचार समझने का प्रयास करें. अक्सर बच्चे अपनी भावनाओं को समय के साथ त्याग आगे बढ़ने में सक्षम होते हैं.
- यह माना जाता है कि जब तक नकारात्मक भावनाएं बाहर नहीं आतीं तब तक सकारात्मक भावनाएं नहीं आ सकती हैं.
- नकारात्मक भावनाओं के समाप्त होने पर बच्चे समाधानों पर ध्यान केंद्रित करने में अधिक सक्षम होते हैं.
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परवरिश सीजन – 1
बच्चों की बेहतर पालन-पोषण और अभिभावकों की जिम्मेदारियां (परवरिश -1)
बेहतर पालन-पोषण के लिए सकारात्मक सामाजिक नियम अनिवार्य और महत्वपूर्ण हैं (परवरिश-2)
अभिभावक – बाल संवाद (परवरिश-5)
बच्चे दुर्व्यवहार क्यों करते हैं? (परवरिश-8)
मर्यादा निर्धारित करना, (परवरिश-9)
बच्चों को अनुशासित करने के सकारात्मक तरीके (परवरिश-10)
भावनाओं पर नियंत्रण (परवरिश-12)
बच्चों की चिंतन प्रक्रिया और व्यवहार (परवरिश-13)
टालमटोल (बाल शिथिलता) और सफलता (परवरिश-14)
नशापान: प्रयोग से लत तक (परवरिश-15)
छेड़-छाड़ निवारण में अभिभावकों की भूमिका (परवरिश-16)
बच्चों का प्रेरणास्रोत (परवरिश-17)
बच्चों के उद्वेग का प्रबंधन (परवरिश-18)
बच्चों में समानता का भाव विकसित करना (परवरिश-19)
स्थानीय पोषक खाद्य पदार्थ (परवरिश-21)
आपदा के समय बच्चों की परवरिश (परवरिश-22)
परवरिश सीजन – 2
विद्यालय के बाद का जीवन और अवसाद (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-01)
किशोरों की थकान और निंद्रा (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-02)
दोषारोपण बनाम समाधान (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-03)
किशोरों में आत्महत्या की प्रवृति (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-04)
पितृसत्ता और किशोरियों की परवरिश (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-05)
किशोर-किशोरियों में शारीरिक परिवर्तन (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-06)