राहुल मेहता
रांची: घर में होली का त्यौहार धूम-धाम से मनाने की चर्चा चल रही थी. पूजा ने कहा कि वह सहेलियों के घर जाएगी. फिर क्या था, मां शुरू हो गई.“इसको तो कुछ समझ है ही नहीं, इतनी बड़ी हो गयी है लेकिन हरकत अभी भी बच्चों जैसी.” पूजा भी परेशान. झुंझला कर बोल पड़ी- “अभी थोड़ी देर पहले तो मुझे बच्ची कह कर चुप कराया था. जब देखो तब केवल उपदेश, कभी यह नहीं तो कभी वह नहीं. हमारी मर्जी से तो किसी का कोई लेना देना ही नहीं है”.
अभिभावकों के लिए बच्चे हमेशा छोटे ही होते हैं. वे अगर कुछ बोलते हैं तो बच्चों के भले के लिए ही. लेकिन कभी-कभी वे भूल जाते हैं कि उनके बच्चे अब बड़े हो गए हैं. छोटे बच्चों की तुलना में अभिभावकों को किशोरों के साथ अलग व्यवहार करना चाहिए.
किशोरों की चाहत एवं भावनाएं :
किशोर खुद सीखना, बड़ों जैसा सम्मान और अक्सर अपने फैसले खुद करना चाहते हैं. उनमें अधिक स्वतंत्रता, आत्मसम्मान और दोस्तों के स्वीकृति की चाहत होती है. किशोरों को यौनिकता संबंधी उत्सुकता, नशे के प्रयोग में रूचि, भविष्य की चिंता आदि हो सकती हैं. अनुभव की कमी के कारण उनके हर फैसले सही नहीं हो सकते. यह भी हो सकता है कि उनके फैसले आवेश में या दूरगामी परिणाम को अनदेखी कर लिए गए हो. ऐसी परिस्थिति में पूजा की मां की तरह सीधे मना न कर दें बल्कि:
- किशोरों से खुला संवाद करें, असहमति का कारण बताते हुए अपनी बात रखें.
- किशोरों के निर्णयों का आदर करें और बेहतर निर्णय लेने में सहयोग करें.
- गलती होने पर सकारात्मक अनुशासन का तरीका अपनाएं. बहुत ज्यादा टोका-टाकी न करें.
- किशोरों को कभी नहीं मारें. कठोर व्यवहार किशोरों पर बुरा प्रभाव डालता है.
- किशोरों के अच्छे काम की प्रशंसा कर आप उनसे अपने रिश्ते बेहतर बना सकते हैं.
- किशोरों के प्रति सम्मान और समझ दिखाना, उनके व्यवहार को बेहतर बनाता है.
किशोरों के साथ सकारात्मक अनुशासन का तरीका:
- यह समझने की कोशिश करें कि आपके बच्चे स्थिति को कैसे देखते हैं.
- अपने बच्चे से उनके कार्यों के परिणामों के बारे में सोचने के लिए कहें.
- उन्हें गलती के बारे में बताये और उसे सुधारने में मदद करें.
- घर के कायदा-कानून या नियम बनाने में उनकी राय लें.
- उपदेश के बजाय, उनकी बातों को समझने की कोशिश करें और अपना तर्क रखें.
- आप गुस्सा दिखा सकते हैं, लेकिन प्यार करना बंद नहीं कर सकते.
किशोरावस्था में भटकाव की संभावना ज्यादा होती है. नशापान जैसे अवगुण बच्चे संगत में प्रयोग के तौर पर शुरू करते हैं. अतः बच्चों के दोस्तों के बारे में जानकारी अवश्य रखें. वे परिवार के बाहर मार्गदर्शन और रोल मॉडल की तलाश कर सकते हैं. यही नहीं वे माता-पिता की तुलना में साथियों के साथ अधिक बातचीत करना पसंद करते हैं. अपनी पसंद और निर्णय लेने की चाहत के कारण कभी-कभी उनका रवैया विद्रोही हो सकता है और वे चुनौतीपूर्ण और आक्रामक हो सकते हैं. इन सभी से विचलित न हों. आपका संयमित व्यवहार उनके आक्रमकता को नियंत्रित कर सकता है. अतः बच्चे के साथ ज्यादा समय बिताएं, अनुभवों को साझा करें, उनके विचारों और चिंताओं को सुनें, तारीफ करें, उनकी शिक्षा में रुचि दिखाएं. अपने निर्णय थोपने या उनके समस्यायों को हल करने के बजाय उन्हें निर्णय लेने,परस्थिति का सामना करने, समस्याओं को हल करने, तर्कपूर्ण बनने में मदद करें.
परवरिश सीजन – 1
बच्चों की बेहतर पालन-पोषण और अभिभावकों की जिम्मेदारियां (परवरिश -1)
बेहतर पालन-पोषण के लिए सकारात्मक सामाजिक नियम अनिवार्य और महत्वपूर्ण हैं (परवरिश-2)
अभिभावक – बाल संवाद (परवरिश-5)
बच्चे दुर्व्यवहार क्यों करते हैं? (परवरिश-8)
मर्यादा निर्धारित करना, (परवरिश-9)
बच्चों को अनुशासित करने के सकारात्मक तरीके (परवरिश-10)
भावनाओं पर नियंत्रण (परवरिश-12)
बच्चों की चिंतन प्रक्रिया और व्यवहार (परवरिश-13)
टालमटोल (बाल शिथिलता) और सफलता (परवरिश-14)
नशापान: प्रयोग से लत तक (परवरिश-15)
छेड़-छाड़ निवारण में अभिभावकों की भूमिका (परवरिश-16)
बच्चों का प्रेरणास्रोत (परवरिश-17)
बच्चों के उद्वेग का प्रबंधन (परवरिश-18)
बच्चों में समानता का भाव विकसित करना (परवरिश-19)
स्थानीय पोषक खाद्य पदार्थ (परवरिश-21)
आपदा के समय बच्चों की परवरिश (परवरिश-22)
परवरिश सीजन – 2
विद्यालय के बाद का जीवन और अवसाद (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-01)
किशोरों की थकान और निंद्रा (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-02)
दोषारोपण बनाम समाधान (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-03)
किशोरों में आत्महत्या की प्रवृति (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-04)
पितृसत्ता और किशोरियों की परवरिश (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-05)
किशोर-किशोरियों में शारीरिक परिवर्तन (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-06)