राहुल मेहता
रांची: सुमन और गीता साथ खेलतीं, साथ विद्यालय जातीं और अपना हर सामान साझा करतीं. दोनों में नोक-झोंक तो होती परन्तु क्षण भर के लिए. मजाल था कि उनके समक्ष कोई इनकी बुराई कर देता. फिर ऐसा क्या हुआ कि दोनों ने बात करना बंद कर दिया. पिताजी को भी यह बात खटकी तो उन्होंने सुमन और गीता से अलग-अलग बात की. आश्चर्यजनक! दोनों के पास शिकायत की बड़ी पोटली थी, छोटी से लेकर बड़ी, हाल से लेकर 10 वर्ष से ज्यादा पुरानी भी. दोनों एक दुसरे की अच्छाईयां भूल बस नकारात्मक घटनाओं की ही जिक्र कर रहीं थी. उसने ये कहा था, ऐसा किया था, यह नहीं दिया था, उसे अनदेखा किया, उसका फायदा उठाया, स्वार्थी है, उसकी हिम्मत कैसे हुई, मेरा तो घर में कोई महत्व ही नहीं है. सूची काफी लम्बी थी, लेकिन जानी- पहचानी भी.
मानव मस्तिष्क में प्रतिदिन औसतन 60,000 विचार आते हैं. इन विचारों में बहुमत नकारात्मक होती हैं- कुछ खुद के बारे में कुछ दूसरों से सम्बंधित. हम आमतौर पर उन पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं. परन्तु यदि स्वयं, किसी दूसरे व्यक्ति या समूह के प्रति किसी एक घटना के कारण नकारात्मक विचार श्रृंखला बनने लगती है तो यह नुकसानदायक हो जाता है. अधिकतर समय ये विचार सही नहीं होते और सामान्य दिनों में लोग इन पर ध्यान भी नहीं देते.
अपने बारे में नकारात्मक विचारों का प्रभाव:-
- वे आमतौर पर बच्चों के मनोदशा और भावनाओं पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं.
- इससे आत्म-संदेह, अवसाद, चिंता, क्रोध, चिड़चिड़ापन आदि हो सकती हैं.
- खुद के बारे में नकारात्मक विचार जैसे- मैं किसी काम का नहीं, बोझ हूं, हमेशा मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है?
- यह आत्म-हत्या जैसे बड़ी समस्या का प्रारंभिक चरण है.
- नियमित नकारात्मक विचारों से मस्तिष्क की रासायनिक प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है.
दूसरे के बारे में नकारात्मक विचारों का प्रभाव:-
- आपसी व्यक्तिगत रिश्ते ख़राब होते हैं. उस व्यक्ति कि कोई बात सही नहीं लगती.
- बच्चे सच्चाई से विमुख हो कल्पना की दुनिया में रहने लगते हैं जो उनके सफलता को प्रभावित करती है.
- बच्चे की तर्क क्षमता प्रभावित होती है, यह सीखने की प्रक्रिया को बाधित करती है.
- व्यक्ति या समूह विशेष के प्रति पूर्वाग्रह, दुर्भावना, अतिश्योक्ति पूर्ण नफरत, शक उत्पन्न हो सकती है.
- बच्चे में व्यक्ति, समूह और व्यवस्था के प्रति अविश्वास की भावना उत्पन्न हो सकती है, जो नुकसानदायक हो सकता है और बच्चे को विद्रोही बना सकता है.
“टीचर ने मेरे साथ ….किया. जबकि मेरी कोई गलती नहीं थी”, हर बच्चे के लिए आम वाक्य हैं. बच्चों को लगता है वे सही थे. अधिकतर समय उनका विचार गलत होता है. परन्तु यदि समय पर हस्तक्षेप न किया जाए और वैसी घटनाओं की पुनरावृति होती रहे तो यह स्वस्फूर्त नकारात्मक विचारों का मार्ग प्रशस्त करता है. यह बड़ों में भी होता है, परन्तु बच्चे ज्यादा प्रभावित होते हैं अतः
- बच्चों से अपने बारे में नकारात्मक विचारों को सूचीबद्ध करने के लिए कहें.
- यदि नकारात्मक विचार का कोई उत्प्रेरक तत्व है तो उसे पहचानने में बच्चे की मदद करें.
- बच्चों से बात करें. उनके नकारात्मक विचारों और उनके तर्कों को सुने.
- संभावित परिस्थितियों के सन्दर्भ में, उन्हें पुनः सोचने के लिए प्रेरित करें.
- विरोधी व्यक्ति के सकारात्मक प्रयासों एवं उनके पक्ष को जानने के लिए मदद करें.
- नकारात्मक विचारों को सकारात्मक रूप से सोचने के लिए बच्चे को प्रेरित करें जैस: “मैं बेकार हूँ, मुझसे यह नहीं होगा” के जगह “कोई बात नहीं मैं अगली बार और मेहनत करूंगा”.
नकारात्मक विचार समस्या को और ज्यादा विकृत एवं जटिल बना देती हैं. बच्चों को नकारात्मक विचार को समझने एवं उनके निदान में मदद करें. अभिभावक भी अपने नकारात्मक विचार को पहचाने एवं बच्चों से तदनुरूप व्यवहार करें.
परवरिश सीजन – 1
बच्चों की बेहतर पालन-पोषण और अभिभावकों की जिम्मेदारियां (परवरिश -1)
बेहतर पालन-पोषण के लिए सकारात्मक सामाजिक नियम अनिवार्य और महत्वपूर्ण हैं (परवरिश-2)
अभिभावक – बाल संवाद (परवरिश-5)
बच्चे दुर्व्यवहार क्यों करते हैं? (परवरिश-8)
मर्यादा निर्धारित करना, (परवरिश-9)
बच्चों को अनुशासित करने के सकारात्मक तरीके (परवरिश-10)
भावनाओं पर नियंत्रण (परवरिश-12)
बच्चों की चिंतन प्रक्रिया और व्यवहार (परवरिश-13)
टालमटोल (बाल शिथिलता) और सफलता (परवरिश-14)
नशापान: प्रयोग से लत तक (परवरिश-15)
छेड़-छाड़ निवारण में अभिभावकों की भूमिका (परवरिश-16)
बच्चों का प्रेरणास्रोत (परवरिश-17)
बच्चों के उद्वेग का प्रबंधन (परवरिश-18)
बच्चों में समानता का भाव विकसित करना (परवरिश-19)
स्थानीय पोषक खाद्य पदार्थ (परवरिश-21)
आपदा के समय बच्चों की परवरिश (परवरिश-22)
परवरिश सीजन – 2
विद्यालय के बाद का जीवन और अवसाद (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-01)
किशोरों की थकान और निंद्रा (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-02)
दोषारोपण बनाम समाधान (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-03)
किशोरों में आत्महत्या की प्रवृति (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-04)
पितृसत्ता और किशोरियों की परवरिश (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-05)
किशोर-किशोरियों में शारीरिक परिवर्तन (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-06)