राहुल मेहता,
रांची: नीरज बड़ी लगन से रूटीन बनाता. उसे टेबल के पास चिपकाता और प्रण लेता कि वह अगले सोमवार से इस रूटीन का अक्षरशः पालन करेगा. अक्सर सोमवार को कुछ हो जाता और नया दिन तय हो जाता. यह सिलसिला चलता ही रहता और बेचारा रूटीन ठीक से क्रियान्वित होने की राह देखते-देखते बदल जाता.
अधिकतर बच्चे में एक नीरज जरूर होता है. एक हद तक यह सामान्य व्यवहार है. परंतु यदि इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो यह सफलता को प्रभावित करता है. जीवन में सफलता के लिए शिक्षा, हुनर, संसाधन, अवसर, नवीनता, दृढ़ निश्चय आदि के साथ सही समय पर उठाया गया सही कदम और निरंतरता आवश्यक है. अभिभावक बच्चों में यह गुण बचपन से ही विकसित करने में मदद कर सकते हैं.
टालमटोल का प्रभाव:
कबीर दास का मानना था कि “काल करे सो आज कर, आज करे सो अब”, परन्तु कुछ बच्चे ठीक इसका विपरीत करते हैं. वे किसी काम को तब तक टालते हैं जब तक पानी नाक के ऊपर न आ जाये. इसकी परिणति निम्न रूप में हो सकती है:-
- चिंता, घबराहट, व्याकुलता में वृद्धि. क्षमता से निम्नतर प्रदर्शन.
- हड़बड़ी में गड़बड़ी की संभावना. तैयारी में कमी के कारण शैक्षणिक प्रदर्शन में कमी.
- बच्चे द्वारा अनैतिक राह अपनाने की संभावना. अवसर से वंचित हो जाना.
टालमटोल की आदत एवं परवरिश
बच्चों का व्यवहार परवरिश की शैलियों पर अत्यंत निर्भर करती हैं. अधिनायकवादी (औथोरिटेरियन) अभिभावक के बच्चे अक्सर टालमटोल करने वाले या बाल शिथिलता से ग्रसित हो जाते हैं.
अधिनायकवादी: माता-पिता अत्यधिक सख्त, निर्विवाद, अनुत्तरदायी, दंडात्मक और निष्क्रिय से होते हैं.
आधिकारिक: माता-पिता संतुलित, सक्रीय और उत्तरदायी होते हैं. वे उपयुक्त, लचीली सीमाएं निर्धारित करते हैं.
टालमटोल की आदत का कारण :
अधिकतर अभिभावक बच्चों के टालमटोल के प्रवृति को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते. वे बच्चे को सुस्त, आलसी आदि उपमाओं से अलंकृत भी कर देते हैं, परन्तु यह उनके अधिनायकवादी परवरिश शैली का परिणाम भी हो सकता है:-
- असफलता का डर: कठोर, नियंत्रक, अतिमहत्वाकांक्षी अभिभावक के बच्चे विफलता के भय से कार्यों को टालना सीख सकते हैं. अक्सर कठोर माता-पिता के बच्चे भी कठोर होते हैं और जोखिम उठाने से डरते हैं.
- अनुत्तरदायी या निष्क्रियता: यदि अभिभावक बच्चे के परवरिश पर ध्यान नहीं देते तो बाल-सुलभ व्यवहार के कारण वे कार्यों को टालने लगते हैं जो धीरे-धीरे उनकी आदत बन जाती है.
- अनुपयुक्त अपेक्षा: यदि अभिभावक को यह लगता है कि उनका बच्चा पहली बार में कोई लक्ष्य हासिल नहीं कर सकता, या ‘इतना ही’ काफी है तो उनके बच्चे भी टालमटोल करना सीख जाते हैं. यदि लक्ष्य बहुत ऊँचा हो तब भी बच्चे हिम्मत हार “अगली बार” की प्रतीक्षा में शिथिल हो सकते हैं.
- सख्त अभिभावक: यदि अभिभावक सख्त होते हैं तो आपसी संवाद कम होती है. कुछ बच्चे अभिभावक के आज्ञा को ठुकरा नहीं सकते. अत: विद्रोह स्वरुप टालमटोल करने लगते हैं या बहाना बनाने लगते हैं.
- अतिसंरक्षित अभिभावक: अत्यधिक संरक्षण के कारण बच्चे समस्यायों के समाधान एवं अपने कार्यों के लिए अभिभावक पर निर्भर हो जाते हैं. कार्य नहीं होने पर बच्चे का जवाब होता है- “यह मेरी गलती नहीं है, आपने मुझे बताया ही नहीं कि कार्य कैसे करना है”. कालांतर में यह बाल शिथिलता में परवर्तित हो सकती है.
पूर्णतावाद अक्सर अधिक उत्पादकता में बाधक होता है. अनुशासन और मर्यादा का पालन करें परन्तु प्यार से. बच्चे को भरोसा दिलाये कि “सही नहीं” का मतलब “असफल” नहीं होता है. उनको सर्वोत्तम के लिए निरंतर प्रयास करनी चाहिए. टालमटोल की प्रवृति को अपने व्यवहार में सुधार और बच्चे के समय प्रबंधन के द्वारा नियंत्रित करें.
परवरिश सीजन – 1
बच्चों की बेहतर पालन-पोषण और अभिभावकों की जिम्मेदारियां (परवरिश -1)
बेहतर पालन-पोषण के लिए सकारात्मक सामाजिक नियम अनिवार्य और महत्वपूर्ण हैं (परवरिश-2)
अभिभावक – बाल संवाद (परवरिश-5)
बच्चे दुर्व्यवहार क्यों करते हैं? (परवरिश-8)
मर्यादा निर्धारित करना, (परवरिश-9)
बच्चों को अनुशासित करने के सकारात्मक तरीके (परवरिश-10)
भावनाओं पर नियंत्रण (परवरिश-12)
बच्चों की चिंतन प्रक्रिया और व्यवहार (परवरिश-13)
टालमटोल (बाल शिथिलता) और सफलता (परवरिश-14)
नशापान: प्रयोग से लत तक (परवरिश-15)
छेड़-छाड़ निवारण में अभिभावकों की भूमिका (परवरिश-16)
बच्चों का प्रेरणास्रोत (परवरिश-17)
बच्चों के उद्वेग का प्रबंधन (परवरिश-18)
बच्चों में समानता का भाव विकसित करना (परवरिश-19)
स्थानीय पोषक खाद्य पदार्थ (परवरिश-21)
आपदा के समय बच्चों की परवरिश (परवरिश-22)
परवरिश सीजन – 2
विद्यालय के बाद का जीवन और अवसाद (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-01)
किशोरों की थकान और निंद्रा (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-02)
दोषारोपण बनाम समाधान (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-03)
किशोरों में आत्महत्या की प्रवृति (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-04)
पितृसत्ता और किशोरियों की परवरिश (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-05)
किशोर-किशोरियों में शारीरिक परिवर्तन (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-06)