राहुल मेहता,
रांची: रंजीता के साथ छेड़–छाड़ की बात जब उसके बड़े भाई के कानों तक पहुंची तो उसने अपने दोस्तों के साथ आरोपी लड़के की जम कर पिटाई कर दी.
लड़का भी उसी गांव का था. उसके भी कुछ हितैषी थे. अगले दिन कोई लड़के के दोष दे रहा था तो कोई रंजीता के चरित्र पर ही सवाल उठा रहा था. कुछ लोगों के सवाल अलग थे –
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क्या इस घटना को रोका जा सकता था?
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आखिर इस घटना के जिम्मेदार कौन है?
छेड़–छाड़ एक गंभीर समस्या है. इसके कई कारण हैं. निवारण के तरीके भी अनेक हैं, परन्तु उपरोक्त सवाल भी बहुत महत्वपूर्ण हैं.
अधिकतर समय छेड़–छाड़ की घटना चरणबद्ध प्रक्रिया से गुजरती है– देखना, टिप्पणी करना, ध्यानाकर्षण करना, सन्देश भेजना, मार्ग अवरुद्ध करना आदि से होते हुए शारीरिक दुर्व्यवहार तक, यदि कोई उचित प्रतिरोध नहीं किया जाता.
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रंजीता भी टिपण्णी स्तर पर प्रतिवाद कर घटना को रोक सकती थी. लेकिन उसने न तो कोई सख्त कदम उठाया न ही अभिभावकों को बताया. आखिर क्यों? क्या उसकी सहमती थी, जैसा गाँव के कुछ लोग कह रहे थे या कारण कुछ और था?
किशोरियों के मौन का कारण
व्यक्ति का व्यवहार उनके ज्ञान, मानसिकता, अनुभव,परिस्थिति आदि पर तो निर्भर करती ही है सामाजिक मर्यादा द्वारा भी निर्धारित होती है. हर सामाजिक मानदंड बच्चों को सिखाया नहीं जीता.
बच्चे देख कर भी सीख जाते हैं और उन्हें आत्मसात कर लेते हैं. रंजीता को इस घटना के बारे में घर में किसी को बताने का सहस नहीं हुआ. उसे लगा कि यदि उसने छेड़–छाड़ के बारे में घर में बता दिया तो–
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उसकी पढ़ाई छुड़ा दी जाएगी, उसके बहार आने जाने पर पाबन्दी लगा दी जाएगी,
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उसकी शादी जल्द करा दी जाएगी,
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उसे अवसरों से वंचित होना पड़ेगा और वह अपना सपना पूरा नहीं कर पायेगी,
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गाँव में उसकी बदनामी होगी, वह लड़का और कुत्सित राह अपनाएगा…….. आदि
किशोरियों के मौन का जिम्मेदार
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अंतिम कारण के अलावा अन्य कारणों के लिए जिम्मेदार कौन हैं?
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ये कदम कौन उठा सकता था? उसके मन में किसका और किससे भय था?
सभी जवाब के केंद्र में अभिभावक हैं. तब परिवर्तन की जरुरत कहाँ है? स्वभाविकतः परवरिश में. रंजीता के अभिभावकों ने यदि कभी उसे प्रत्क्षतः उपरोक्त परिणामों के बारे में नहीं बताया तो उसे पारिवारिक सामाजिक मानदंडो के बारे में भी नहीं बताया.
कभी उसे भरोसा नहीं दिलाया. न तो कर्मों से न ही बातों से. यदि उसे भरोसा होता तो वह घर में किसी को बताने का साहस अवश्य करती.
अभिभावकों की भूमिका
तृप्ति को भी विद्यालय के राह में कुछ लड़के कमेन्ट करते. उसने अपनी मां से यह बात बताई. मां ने लोक–लाज की दुहाई देकर नजरंदाज करने की सलाह दे डाली.
तृप्ति ने मां की बात मान ली लेकिन लड़के नहीं माने. धीरे–धीरे मौखिक छेड़–छाड़ वीभत्स होते गई. अति के प्रतिकार पर बात गांव में फ़ैल गयी. बादनामी तो अब भी हुई, साथ ही कई सवालों को जन्म दे गई.
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अभिभावक बेटों को महिलाओं का सम्मान करना सिखाएं. उन्हें बताएं कि उनकी गलती का कितना बड़ा खामियाजा लड़कियों को भुगतना पड़ता है.
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बेटियों से खुल कर समाज में छेड़–छाड़ के घटना के बारे में चर्चा करें. उन्हें भरोसा दिलाये कि ऐसे घटनाओं में लड़कियों का दोष नहीं होता. प्रारंभ में ही घटना की जानकारी से उसे रोका जा सकता है.
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यदि बेटियां कभी परेशान या उलझन में नजर आये तो उनके साथ समय बिताये. कारण जानने का प्रयास करे.
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बेटियों को स्व–रक्षा हेतु उचित प्रशिक्षण दें. निवारण हेतु सामुदायिक पहल में शामिल हो.
सुनसान जगह पर अकेली लड़की के लिया नजरअंदाज एक विकल्प हो सकता है पर सार्वजनिक जगह पर प्रतिकार सर्वोतम उपाय मन जाता है.
परवरिश सीजन – 1
बच्चों की बेहतर पालन-पोषण और अभिभावकों की जिम्मेदारियां (परवरिश -1)
बेहतर पालन-पोषण के लिए सकारात्मक सामाजिक नियम अनिवार्य और महत्वपूर्ण हैं (परवरिश-2)
अभिभावक – बाल संवाद (परवरिश-5)
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बच्चों को अनुशासित करने के सकारात्मक तरीके (परवरिश-10)
भावनाओं पर नियंत्रण (परवरिश-12)
बच्चों की चिंतन प्रक्रिया और व्यवहार (परवरिश-13)
टालमटोल (बाल शिथिलता) और सफलता (परवरिश-14)
नशापान: प्रयोग से लत तक (परवरिश-15)
छेड़-छाड़ निवारण में अभिभावकों की भूमिका (परवरिश-16)
बच्चों का प्रेरणास्रोत (परवरिश-17)
बच्चों के उद्वेग का प्रबंधन (परवरिश-18)
बच्चों में समानता का भाव विकसित करना (परवरिश-19)
स्थानीय पोषक खाद्य पदार्थ (परवरिश-21)
आपदा के समय बच्चों की परवरिश (परवरिश-22)
परवरिश सीजन – 2
विद्यालय के बाद का जीवन और अवसाद (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-01)
किशोरों की थकान और निंद्रा (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-02)
दोषारोपण बनाम समाधान (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-03)
किशोरों में आत्महत्या की प्रवृति (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-04)
पितृसत्ता और किशोरियों की परवरिश (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-05)
किशोर-किशोरियों में शारीरिक परिवर्तन (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-06)