राहुल मेहता,
जीवन में विपत्तियां आती रहती हैं. कुछ लोग इसमें बिखर जाते हैं कुछ लड़ कर पार निकल जाते हैं. कुछ बातें कहने या लिखने में तो सरल होती हैं परन्तु उनके पालन में अनेक कठिनाइयां आती है. फिर भी जो विपत्ति का सामना सही तरीके से करते हैं, वही आगे निकल पाते हैं. कोविड 19 एक ऐसी ही आपदा है. हमने खबरों में पढ़ा, अनेक लोगों ने भय से आत्महत्या कर लिया. आखिर क्यों?
हम सभी के लिए यह कठिन समय हो सकता है क्योंकि हम टेलीविजन, सोशल मीडिया,समाचार पत्रों, परिवार और दोस्तों और अन्य स्रोतों के माध्यम से दुनिया भर से कोरोना के प्रसार के बारे में सुन रहे हैं. ये हमें चिंतित करती है, आतंकित करती है और कभी-कभी व्यक्ति को ऐसा काम करने के लिए भी बाध्य कर देती है जिसे हम सामान्य परिस्थितियों में उचित नहीं मानते.
बच्चों का घर में मार्गदर्शन
बच्चों के लिए भी यह एक कठिन वक्त है. उनके दोस्त और खेल भी छुट गए हैं. जैसे पाने रास्ता निकालता है वैसे ही बच्चे भी कुछ राह निकालने का प्रयास करते हैं. यह रास्ता क्या मोबाइल है, टी वी है या फिर आप. पहले दो के अगर अनेक दुष्प्रभाव है तो तीसरे विकल्प के अनेक लाभ. इसलिए थोड़ा बच्चा बने, बच्चों के साथ वक्त बिताएं. घर पर रहना कुछ समय के लिए काफी अच्छा हो सकता है, लेकिन लम्बे समय में यह उबाऊ और नीरस भी हो सकता है. अतः घर का माहौल भी सकारात्मक बनाये रखे. इसके लिए आप
- घर के काम करने में मदद करें और बच्चों को भी प्रेरित करें
- संगीत सुनने, पढ़ने, टेलीविज़न देखने के साथ साथ पेंटिंग जैसे हुनर और घरेलु खेल आदि पर भी विचार करें.
- बच्चों को जीवन कौशल विकसित करने में मदद करें- जैसे खाना बनाना, अपना ध्यान रखना, घर ठीक करना
- बहार निकालने से अपने आप अनेक शारीरिक अभ्यास हो जाता है. अतः इस समय शारीरिक रूप से सक्रिय रहने के लिए सरल इनडोर व्यायाम अपनाएं जो उन्हें चुस्त और दुरुस्त रखेगा.
- घर के बुजुर्ग सदस्यों के आवशयकताओं को समझने और उनकी दवाइयाँ, दैनिक ज़रूरतें आदि में मदद करें.
भावनात्मक समस्याओं को संभालना
- चिंता के समय, कुछ मिनटों के लिए धीरे-धीरे सांस लेने का अभ्यास करें. उन विचारों से दूरी बनाएं जो आपको चिंतित कर रहे हैं. कोई संगीत सुन सकते हैं.
- जब गुस्सा और चिड़चिड़ापन महसूस हो तो अपने दिमाग को शांत करते हुए, 10 से 1 तक की गिनती करके, अपता ध्यान बंटा सकते हैं.
- अपना खीझ बच्चों पर ना निकालें. अगर बच्चों को मना करना है तो सही सकारात्मक तरीके से करें. क्या गलत है, क्यों गले है और सही विकल्प क्या है उस पर चर्चा करें.
मार्गदर्शन एवं परामर्श
सृजन फाउंडेशन के लिए लिखी गयी परवरिश की यह श्रृंखला, आम जनता की आवश्यकता को ध्यान में रख कर तथा वृहद सामाजिक लाभ के लिए कुछ बदलाव के साथ बी एन एन भारत पर प्रकाशित की गयी. परवरिश के विभिन्न लेखों को पढ़ कर अनेक पाठकों ने लेखक से संपर्क किया. आवश्यकता पड़ने पर कोई भी अभिभावक दिन के 10 से 11 बजे के बीच निशुल्क परामर्श के लिए 8084086182 पर संपर्क कर सकतें हैं.
परवरिश की यह श्रृंखला यहीं समाप्त होती है. घर-परिवार श्रृंखला के माध्यम से हम मिलते रहेंगे. एक बार फिर सृजन फाउंडेशन और बी एन एन भारत को संदेश तैयार करने और जन-जन तक पहुंचाने में मदद करने के लिए धन्यवाद.
परवरिश सीजन – 1
बच्चों की बेहतर पालन-पोषण और अभिभावकों की जिम्मेदारियां (परवरिश -1)
बेहतर पालन-पोषण के लिए सकारात्मक सामाजिक नियम अनिवार्य और महत्वपूर्ण हैं (परवरिश-2)
अभिभावक – बाल संवाद (परवरिश-5)
बच्चे दुर्व्यवहार क्यों करते हैं? (परवरिश-8)
मर्यादा निर्धारित करना, (परवरिश-9)
बच्चों को अनुशासित करने के सकारात्मक तरीके (परवरिश-10)
भावनाओं पर नियंत्रण (परवरिश-12)
बच्चों की चिंतन प्रक्रिया और व्यवहार (परवरिश-13)
टालमटोल (बाल शिथिलता) और सफलता (परवरिश-14)
नशापान: प्रयोग से लत तक (परवरिश-15)
छेड़-छाड़ निवारण में अभिभावकों की भूमिका (परवरिश-16)
बच्चों का प्रेरणास्रोत (परवरिश-17)
बच्चों के उद्वेग का प्रबंधन (परवरिश-18)
बच्चों में समानता का भाव विकसित करना (परवरिश-19)
स्थानीय पोषक खाद्य पदार्थ (परवरिश-21)
आपदा के समय बच्चों की परवरिश (परवरिश-22)
परवरिश सीजन – 2
विद्यालय के बाद का जीवन और अवसाद (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-01)
किशोरों की थकान और निंद्रा (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-02)
दोषारोपण बनाम समाधान (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-03)
किशोरों में आत्महत्या की प्रवृति (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-04)
पितृसत्ता और किशोरियों की परवरिश (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-05)
किशोर-किशोरियों में शारीरिक परिवर्तन (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-06)
“आंचल” परवरिश मार्गदर्शिका’ हर अभिभावक के लिए अपरिहार्य