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बच्चों को अनुशासित करने के सकारात्मक तरीके (परवरिश-10)

अनुशासन विधियों के चयन में समझदारी महत्वपूर्ण होती है. अक्सर इसके लिए समय नहीं मिलता. अतः अनुशासन विधि को अपने व्यवहार में आत्मसात करें और आवश्यकतानुसार भविष्य में अनुशासन शैली में सुधार करें.

by bnnbharat.com
July 6, 2021
in Uncategorized
बच्चों को अनुशासित करने के सकारात्मक तरीके (परवरिश-10)

अच्छा अनुशासन (परवरिश-10)

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राहुल मेहता

रांची: रोहित खेलते समय गिर गया और उसका कपड़ा गन्दा हो गया. घर लौटा तो देखा कुछ मेहमान आये हुए थे. वह चुपके से बाथरूम की ओर जाने लगा. पर पिताजी ने देख लिया. “कोई प्रणाम-पाती नहीं? ध्यान कहां रहता है तुम्हारा?”- रोहित ने अपनी बात कहनी चाही पर पिताजी ने रोक दिया. उनकी बातें रोहित के कानों से वज्र स्वरुप टकरा रही थी. वह रसोई में आकर मां से बहस करने लगा- “कपड़ा बदल कर प्रणाम कर देता तो क्या बिगड़ जाता? अगर उनको डांटना ही था तो बाद में डांट देते, मेहमानों के सामने बेइज्जत करना जरुरी था क्या?” क्या रोहित के सवाल वाजिब नहीं?

अभिभावक, बच्चों को अनुशासित करने के लिए अनेक तरीकों का उपयोग करते हैं. अनुशासन का उद्देश्य बच्चों को नीचा दिखाना या उनकी कमियां खोजना नहीं अपितु उन्हें बेहतर व्यवहार सीखाना होना चाहिए. अनुशासन के तरीके बच्चे के उम्र के अनुसार बदलनी चाहिए.

अनुशासन के तरीके:

अनुशासन के तरीके बच्चे के स्वभाव, परिस्थिति, परिवार के मूल्यबोधों और व्यवहार के कारण पर निर्भर करते हैं. कोई तरीके पूर्णरूपेण सही या गलत नहीं होते. इनके प्रभाव अनुपालन के तरीकों पर भी निर्भर करते हैं.  अनुशासन के कुछ प्रमुख तरीके निम्नवत हैं:-

  • नकारात्मक तरीका – मारना-पीटना, सजा देना, वंचित करना आदि. यह तरीका कभी-कभी तत्कालिक रूप से प्रभावी नजर आता है, लेकिन बच्चे में उचित अनुशासन विकसित नहीं करता. टाइम आउट एवं निर्धारित काल के लिए विशेषाधिकार से वंचित करना तुलनात्मक रूप से ज्यादा प्रभावी नकारात्मक तरीके हैं.
  • सकारात्मक तरीका– प्रशंसा करना, हौसला बढ़ाना, हल खोजना, प्रेरित करना आदि.
  • पुनर्निर्देशित करना– यदि बच्चा कहना नहीं मान रहा है तो, पनी भावनाओं पर नियंत्रण रखे और उसे अन्य कार्य करने के लिए दें.
  • सीमाएं निर्धारित करना: हर व्यवहार का विशेष नतीजा होता है, यह सिखाया जाना चाहिए (परवरिश-9).
  • व्यवहार सुधार: वांछित व्यवहार को बढ़ाना एवं अवांछित व्यवहार को विशेष तरीकों से कम करना.

बच्चों को अनुशासित करने के सकारात्मक तरीके:-

अच्छे व्यवहार को प्रोत्साहित करें: अच्छे व्यवहार को स्वीकारें, बच्चे को बताएं और उन्हें प्रोत्साहित करें.

बच्चे को निर्देशित करें: बच्चे के दुर्व्यवहार को रोकें और उन्हें सही व्यवहार सिखाएं.

नजरअंदाज करें: यदि बच्चे ध्यानाकर्षण के लिए कोई व्यवहार करते हैं तो नजरंदाज करें.

अनुमति: एक निश्चित स्थान छोड़ने, दूसरों का सामान लेने, कुछ काम के लिए अनुमति लेना सिखाएं.

तार्किक: अनावश्यक मांग पूरी न करें, कारण बताएं.

अनुशासन के लिए विकल्प का चयन:

  • छोटे बच्चों के लिए इस्तेमाल होने वाले तरीके बड़े बच्चों के लिए लागू नहीं हो सकते हैं.
  • अनुशासन से पूर्व, बच्चे से पूछें कि उसने गलत व्यवहार क्यों किया.
  • अनुशासन खत्म होने के बाद, बच्चे से पूछें कि उसने क्या सीखा.
  • याद रखें, अनुशासन का लक्ष्य भविष्य में दुर्व्यवहार को रोकना है.

अनुशासन विधियों के चयन में समझदारी महत्वपूर्ण होती है. अक्सर इसके लिए समय नहीं मिलता. अतः अनुशासन विधि को अपने व्यवहार में आत्मसात करें और आवश्यकतानुसार भविष्य में अनुशासन शैली में सुधार करें.

 

 

परवरिश सीजन – 1

बच्चों की बेहतर पालन-पोषण और अभिभावकों की जिम्मेदारियां (परवरिश -1)

बेहतर पालन-पोषण के लिए सकारात्मक सामाजिक नियम अनिवार्य और महत्वपूर्ण हैं (परवरिश-2)

पालन-पोषण की शैली (परवरिश-3)

बच्चों का स्वभाव (परवरिश-4)

अभिभावक – बाल संवाद (परवरिश-5)

उत्तम श्रवण कौशल (परवरिश-6)

तारीफ करना (परवरिश-7)

बच्चे दुर्व्यवहार क्यों करते हैं? (परवरिश-8)

मर्यादा निर्धारित करना, (परवरिश-9)

बच्चों को अनुशासित करने के सकारात्मक तरीके (परवरिश-10)

किशोरावस्था में भटकाव की संभावना ज्यादा होती ह, अतः बच्चों के दोस्तों के बारे में जानकारी अवश्य रखें (परवरिश-11)

भावनाओं पर नियंत्रण (परवरिश-12)

बच्चों की चिंतन प्रक्रिया और व्यवहार (परवरिश-13)

टालमटोल (बाल शिथिलता) और सफलता (परवरिश-14)

नशापान: प्रयोग से लत तक (परवरिश-15)

छेड़-छाड़ निवारण में अभिभावकों की भूमिका (परवरिश-16)

बच्चों का प्रेरणास्रोत (परवरिश-17)

बच्चों के उद्वेग का प्रबंधन (परवरिश-18)

बच्चों में समानता का भाव विकसित करना (परवरिश-19)

बच्चों की निगरानी (परवरिश-20)

स्थानीय पोषक खाद्य पदार्थ (परवरिश-21)

आपदा के समय बच्चों की परवरिश (परवरिश-22)

परवरिश सीजन – 2

विद्यालय के बाद का जीवन और अवसाद (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-01)

किशोरों की थकान और निंद्रा (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-02)

दोषारोपण बनाम समाधान (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-03)

किशोरों में आत्महत्या की प्रवृति (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-04)

पितृसत्ता और किशोरियों की परवरिश (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-05)

किशोर-किशोरियों में शारीरिक परिवर्तन (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-06)

“आंचल” परवरिश मार्गदर्शिका’ हर अभिभावक के लिए अपरिहार्य

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