राहुल मेहता.
रांची: रिया और सुमित का प्यार छेड़-छाड़ के बिना पूरा ही नहीं होता. जब मौका मिले धक्का-मुक्की. पल में लड़ाई और पल भर में प्यार. यह हर दिन का किस्सा था. मां चिल्लाती रहती. कभी-कभी पति को भी खीज कर बोल देती- “सब आपके शह का फल है. बच्चों को तो आप कभी डांटते ही नहीं”. बच्चों के व्यवहार से अभिभावकों का चिंतित, हताश, दुखी, प्रसन्न, गुस्सा आदि होना स्वभाविक है. हर अभिभावकों की प्रतिक्रिया एक जैसी नहीं होती. प्रतिक्रिया परिस्थिति के अनुसार बदलती भी रहती है. आवेशित प्रतिक्रिया का परिणाम उत्तम नहीं होता और बाद में पछताना पड़ता है.
कमला की समस्या तो अलग ही थी. वह समझ ही नहीं पाती कि पति को समझाए तो कैसे. बच्चों की छोटी सी गलती पर वे उन्हें पीट देते, कभी-कभी तो हाथ का सामान पटक देते. बच्चे भी धीरे-धीरे पिता का अनुकरण करने लगे हैं. अभिभावकों की जवाबदेही है बच्चों को सही व्यवहार सिखाना न कि उनके गलत व्यवहार पर सजा देना. भावावेश में अक्सर सही निर्णय नहीं हो पाते. अतः अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने के लिए अपने आप को संभालें.
गुस्सा नियंत्रित करें:
- प्रतिक्रिया करने से पहले, कुछ क्षण गहरी सांस लें.
- बोलने से पहले सोचें. दूसरों का गुस्सा बच्चों पर न निकालें.
- गुस्सा का कारण पता कर उसके समाधान खोजने पर ध्यान केंद्रित करें.
- यदि आप कोई गलती करते हैं तो खेद व्यक्त करें और उसी गलती को दुबारा न करने का प्रयास करें
अभिभावकों की व्यक्तिगत या पारिवारिक उलझने भी बच्चों के परवरिश पर प्रभाव डालती हैं. अतः चिंतामुक्त एवं खुश रहने का प्रयास करें. इसके लिए आप अन्य उपायों के साथ-
- नियमित प्रार्थना, व्यायाम, योग के द्वारा अपने तनाव को कम करें.
- यदि आप चिंतित हैं, तो गहरी सांस लें और सकारात्मक चीजों के बारे में सोचें.
- पर्याप्त नींद लेने और स्वस्थ रहने की कोशिश करें.
- शराब, धूम्रपान या नशा जैसी बुरी आदतों से बचें.
भावनाओं पर नियंत्रण के प्रयास:
अपने चिंता का कारण आपको ज्ञात नहीं हैं, तो अपनी भावनाओं को सुलझाने के लिए किसी से बात करें. अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर, बच्चों को सिखाएं कि इन्हें कैसे नियंत्रित करें. बच्चे भी बड़ों को देख कर और अपने अनुभवों से भावनाओं को नियंत्रित करना सीखते हैं. अतः
- बच्चों के लिए उत्तम रोल मॉडल बने.
- बच्चे के साथ खेले. उन्हें हार पर दुखी होने के बजाय इसे स्वीकार करना और फिर से प्रयास करना सिखाएं.
- बच्चों को कुछ जटिल खेल या कामों में शामिल करें. खीज के बदले निरंतर एवं वैकल्पिक प्रयास के लिए प्रेरित करें
- बेहतर परिणाम के लिए सर्वोत्तम प्रयास के लिए प्रेरित करें. “कर्म करें फल की चिंता न करें” का सही अर्थ समझाएं.
- प्रसन्नता व्यक्त करने के तरीके भिन्न परिस्थिति में भिन्न कैसे हो सकतें हैं बचपन से सिखाएं.
प्रतिकूल जवाब मिलने पर बच्चे नकारात्मक चिंतन प्रक्रिया में जा सकते हैं. अतः नकारात्मक जवाब का कारण बच्चों को अवश्य बताएं.
परवरिश सीजन – 1
बच्चों की बेहतर पालन-पोषण और अभिभावकों की जिम्मेदारियां (परवरिश -1)
बेहतर पालन-पोषण के लिए सकारात्मक सामाजिक नियम अनिवार्य और महत्वपूर्ण हैं (परवरिश-2)
अभिभावक – बाल संवाद (परवरिश-5)
बच्चे दुर्व्यवहार क्यों करते हैं? (परवरिश-8)
मर्यादा निर्धारित करना, (परवरिश-9)
बच्चों को अनुशासित करने के सकारात्मक तरीके (परवरिश-10)
भावनाओं पर नियंत्रण (परवरिश-12)
बच्चों की चिंतन प्रक्रिया और व्यवहार (परवरिश-13)
टालमटोल (बाल शिथिलता) और सफलता (परवरिश-14)
नशापान: प्रयोग से लत तक (परवरिश-15)
छेड़-छाड़ निवारण में अभिभावकों की भूमिका (परवरिश-16)
बच्चों का प्रेरणास्रोत (परवरिश-17)
बच्चों के उद्वेग का प्रबंधन (परवरिश-18)
बच्चों में समानता का भाव विकसित करना (परवरिश-19)
स्थानीय पोषक खाद्य पदार्थ (परवरिश-21)
आपदा के समय बच्चों की परवरिश (परवरिश-22)
परवरिश सीजन – 2
विद्यालय के बाद का जीवन और अवसाद (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-01)
किशोरों की थकान और निंद्रा (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-02)
दोषारोपण बनाम समाधान (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-03)
किशोरों में आत्महत्या की प्रवृति (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-04)
पितृसत्ता और किशोरियों की परवरिश (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-05)
किशोर-किशोरियों में शारीरिक परिवर्तन (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-06)