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चर्मरोगों और दंतरोग में खैर के फायदे, औषधीय गुण तथा लाभ : वनौषधि – 22

by bnnbharat.com
September 5, 2022
in वनौषधि, वैदिक भारत
चर्मरोगों और दंतरोग में खैर के फायदे, औषधीय गुण तथा लाभ : वनौषधि – 22

चर्मरोगों और दंतरोग में खैर के फायदे, औषधीय गुण तथा लाभ : वनौषधि – 22

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प्रचलित नाम- खैर, खादिर और खदिर।

प्रयोज्य अंग- खदिर सार, त्वक् ।
स्वरूप- मध्यम कद का कंटकीय वृक्ष, पर्णवृंत के नीचे एक जोड़ी कंटकों की,
पत्ते संयुक्त
पुष्प श्वेत या हल्के पीले, जो मंजरीयों में होते हैं ।

स्वाद – कटु ।

रासायनिक संगठन- इसके अंदर की काष्ठ (लकड़ी) में कैटेचिन एवं कैटेचुटैनिक अम्ल पाये जाते हैं। इस कैटेचुटैनिक अम्ल में 50 प्रतिशत टैनिन पदार्थ होता है।

उपयोग – चर्मरोगों में, दंत विकारों में (मसूढ़ों की शिथिलता), शुष्ककास, मुखगत व्रण में, पाण्डुरोग में, कुष्ठरोग, श्वसनी शोथ में, कण्डुरोग में, अतिसार में तथा प्रमेह में लाभकारी।

चर्मरोग (श्वित्र, खाज, खुजली एवं कुष्ठरोग) में- इसके पंचांग का क्वाथ बनाकर प्रतिदिन प्रातः सायं दो-दो चम्मच सेवन करना चाहिए, इसके पंचांग को जल में उबालकर इस जल से स्नान करने से या रोग ग्रस्त भाग को इस जल से धोना चाहिये।

कुष्ठ रोग में – कत्थे से स्नानादि कराते हैं तथा खिलाते हैं। कत्था- संग्रहणी, अतिसार तथा खट्टी डकार में लाभकारी, मसूड़ों के

रक्तस्राव में- कत्थे का कुल्ला करने से लाभ होता है ।

खाँसी (कास) में रात्रि के समय वात के कारण होने वाली सूखी खाँसी में दही के एक कप पानी में दो ग्राम खदिर सार डालकर प्रातः एवं सायं पिलाना चाहिये । खदिर के अंतः छाल का चार भाग, बहेड़ा की छाल दो भाग तथा लौंग एक भाग, इन सबका चूर्ण बनाकर दिन में तीन बार एक-एक ग्राम, मधु के साथ चाटने से शुष्क कास में आराम मिलता है।

स्वर भेद (कंठदोष) में- तिल के तेल में कत्था मिलाकर इसमें छोटा सा स्वच्छ कपड़ा भिगोकर मुँह में रखने से गला खुल जाता है ।

श्वित्र रोगों में- खदिर की छाल तथा इसका समभाग आँवला मिलाकर अच्छी तरह उबालकर, इसका सेवन प्रातः सायं इसमें एक एक चम्मच आँवले का चूर्ण मिलाकर करना चाहिए।

व्रण में- खदिर को जल में उबालकर इस जल से व्रण को साफ करना चाहिए एवं इस जल में दो-दो ग्राम त्रिफला मिलाकर प्रातः सायं पिलाना चाहिए। रक्त पित्त (मुख, नासिका, गुदा, मूत्र मार्ग द्वारा रक्त स्राव होता हो) में-खदिर के पुष्पों का चूर्ण एक-एक चम्मच में मधु मिलाकर प्रातः सायं सेवन करना चाहिए। अतिसार में छाछ में पाँच ग्राम कत्था चूर्ण घोलकर पिलाने से इसमें बहुत ही लाभ होता है। यह एक प्रभावी उपचार है। भंगदर में खदिर की छाल तथा त्रिफला का काढ़ा बनाकर, इसमें भैंस का घी तथा विडंग का चूर्ण मिलाकर पिलाना चाहिए। वातरक्त में – खदिर के मूल का चूर्ण इसका समभाग आँवले का रस समभाग मिलाकर इसमें घी तथा मधु मिलाकर प्रातः सायं पिलाना चाहिए।

मात्रा- त्वक् चूर्ण-1-3 ग्राम,

क्वाथ-50-100 मि.ली. खदिरसार- ½ से 1 ग्राम ।

खैर का पेड़


अन्य भाषाओं में खैर के नाम


खादिर या खैर मिमोसेसी कुल का पौधा है। इसका वानस्पतिक (वैज्ञानिक) नाम ऐकेशिया कैटेचू (Acacia catechu (Linn.f.) Willd.) है। वनस्पति विज्ञान में इसे मिमोसा कैटेचू लिन (Mimosa catechu Linn. f.) भी कहा जाता है। खैर (खादिर) को अंग्रेजी में Black Catechu (ब्लैक कैटेचू) कहते हैं। अंग्रेजी में इसके लिए कच ट्री (Cutch tree) या सिर्फ कैटेचु (Catechu) जैसे नाम भी प्रयोग किये जाते हैं। आइये, जानते हैं कि हिंदी समेत अन्य भाषाओं में खैर (खादिर) के नाम क्या हैं:-

• Hindi (acacia catechu in hindi) – खैर, कत्था, खैरबबूल
• English – Black Catechu (ब्लैक कैटेचू), कैटेचु (Catechu), कच ट्री (Cutch tree),
• Sanskrit – खदिर, रक्तसार, गायत्री, दन्तधावन, कण्टकी, बालपत्र, बहुशल्य, यज्ञिय, कदर
• Urdu – खैर (खादिर) (Khair), काठो (Katho)
• Assamese – खेर (Kher), कट (Kat)
• Oriya – खोदिरो (Khodiro), खोईरो (Khoiro)
• Kannada – काचू (Kaachu)
• Gujarati – खेर (Kher), काथो (Katho)
• Telugu (acacia catechu in telugu) – करगालि (Kargali), खदिरमु (Khadiramu)
• Tamil (khadira in tamil) – कदिरम (Kadiram), कोदम (Kodam)
• Bengali – खयेर गाछ (Khayer gaccha), कुथ (Kuth)
• Nepali – खयर (Khayar)
• Marathi – कदेरी (Kaderi), खैर (खादिर) (Khair), लालखैर (खादिर)(Lalkhair)
• Malayalam– कमरंगम (Kamrangam), पुलिन्जी (Pulingi)
• Arabic – काड हिन्दी (Kad Hindi)
• Persian – मस्क दाना (Musk dana)

aic Syn : Acacia Chundra (Roxb) Willd. Acacia catechu

willd MIMOSACEAE (LEGUMINOSAE)

ENGLISH NAME:- Black Catechu. Hindi- Khair, Kattha

PARTS-USED:- Pithregion, Bark, Cendensed extract of heart wased.

DESCRIPTION- A medium sized spiny tree, spines are modification of Stipules, leaves 30-40 pairs pinnal 10-20 pairs; pinnules, flowers on spikes, small creamish white, podthin brown shining.

CHEMICAL CONSTITUENTS- Inner wood contains catechin and catechutannicacid, Catechutannic acid contain about 50% Tannin.

ACTIONS- Anti-inflammatory, Wound healing, Astringent, Cooling, Digestive, Bloodpurifier.

USED-IN- Skin deseases, Dental disorder, Dry cough, Stomatis, Anaemia, Leprosy, Bronchitis, Pruritus, Diarrhoea, Polyuria.

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