प्रचलित नाम- कंघी, घंटिका, कंघिनी और अतिबला
प्रयोज्य अंग- मूल की छाल, पत्र तथा बीज
स्वरूप- बहुवर्षायु, मृदु, श्वेत मखमली रोमावरण युक्त क्षुप, एक से दो मीटर ऊँचा, पत्र दन्तुर, हृदयाकार एवं लम्बेवृन्तयुक्त,
पुष्प – पीतवर्णी के,
फल – चक्राकार गोल कंघी जैसे।
स्वाद – मधुर
रासायनिक संगठन – इस वनस्पति में – गोसीप्टीन, ग्लुकोसीड्स, सायनीडीन, रूटिनोसाईड्स, उत्पत्ततेल, इसके मूल में- मेद अम्ल, ऐस्पारजीन, रेफीनोज़, कांड तथा पत्र में-ऐल्कानॉल, बीटा-सिटोस्टीरॉल, वैनीलिक अम्ल, कैफिक अम्ल, फ्युमारिक अम्ल, फ्रुक्टोज, ग्लूकोज, गैलेक्टोज, ल्युसीन, हिस्टीडीन, थ्रियोनिन, सराईन, ग्लुटामिक अम्ल तथा ऐस्पारटिक अम्ल पाये जाते हैं।
गुण- वेदनाहर, मृदुरेचक, कफशामक, मूत्रल,वातहर, बाजीकारक, स्वेदजनन । अतिबला नपुंसकता दूर करने के लिये इसके बीजों का प्रयोग अति लाभकारी है। कफ एवं दाह युक्त ऐसे विषम ज्वर में अतिबला के मूल एवं शुण्ठी का क्वाथ बनाकर दो या तीन दिन पिलाने से लाभ होता है। ज्वर में-पत्रों तथा मूल काक्वाथ लाभकारी। यह मनुष्य की आयु, शरीर का बल, चमक और यौनशक्ति को बढ़ाती है।
उपयोग – इसके बीज-अर्श में, जीर्ण मूत्राशय शोथ, अपसर्गिका मेह, पत्रों का बाह्य प्रयोग पीड़िकाओं तथा व्रण में, पत्रों का सेक वेदनायुक्त स्थानों पर, पत्रों का क्वाथ थ-दंतशूल में तथा ढीले मसूड़ों पर (कुल्ला कराते हैं) मूत्राशय शोथ में मूल के क्वाथ का निग्रहण लाभकारी। मूल का प्रयोग ज्वर तथा छाती के रोगों में लाभकारी।
बलवर्धक-अतिबला के मूल के रस का सेवन दूध या घी-मधु के साथ प्रातः खाली पेट करने से लाभ होता है। स्वास्थ्य एवं आयु बढ़ती है। इस प्रयोग के समय चावल घी तथा दूध मिलाकर सेवन करना चाहिये।
मूत्रकृच्छ्र में इसके कांड की छाल का क्वाथ बनाकर सेवन करने से लाभ होता है। प्रमेह में-इसके बीज तथा छाल का क्वाथ बनाकर सेवन करना चाहिये। अतिबला के मूल, छाल,पत्र एवं बीज सभी अंग पौष्टिक गुण वाले हैं। रक्त प्रदर में मूल का चूर्ण मधु के साथ लाभकारी। अर्श, नपुंसकता में बीज का चूर्ण लाभकारी।
मात्रा- मूल का चूर्ण-एक तोला ।
बीज का चूर्ण-4-8माशा।
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अनेक भाषाओं में अतिबला के नाम
अतिबला का लैटिन नाम ऐबूटिलॉन इन्डिकम (Abutilon indicum (Linn.) Sw., Syn-Abuliton asiaticum (Linn.) Sweet) है। यह Malvaceae (मालवेसी) कुल का पौधा (Atibala kanghi plant) कहा जाता है। इसे विभिन्न भाषाओं में निम्न नामों से पुकारा जाता है –
Atibala in –
• Hindi – कंघी, झम्पी
• English – इंडियन मैलो (Indian mallow), कंट्री मैलो (Country mallow)
• Sanskrit – अतिबला, कंकतिका
• Odia – नाकोचोनो (Nakochono), पीलिस (Pilis)
• Urdu – कंघी (Kanghi Plant)
• Konkani – वोड्डली पेट्टारी (Voddlipettari)
• Kannada – श्रीमुद्रिगिडा (Srimudrigida)
• Gujarati – खपाट (Khapat), कांसकी (Kanski), डावली (Dabali)
• Tamil (Abutilon Indicum Tamil Name) – पेरूनदुत्ती (Perundutti)
• Telugu – तुत्तुरीबेंडा (Tutturibenda), बोटलाबेंडा (Botalabenda)
• Bengali – पोटारी (Potari)
• Nepali – कंगियो (Kangio), अतिबलु (Atiblu)
• Punjabi – पीली बूटी (Peeli buti), कंगी (Kangi)
• Marathi – पेटारी (Petaari) कासुले (Kahsule)
• Malayalam – वेलुराम (Velluram), कट्टूराम (Katturam), उरम (Uram)
• Arabi – मस्त-उल-गुल (Mast-ul-ghul), दीशार (Deishar);
• Persian – दरख्त-ए-शाहनाह (Darakht-e-shahnah)।
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Abutilon indicum (Linn) Sweet MALVACEAE
ENGLISH NAME:- Indian Mallow, Hindi- Kakahi, Kanghi PARTS-USED:- Root bark, Leaves and Seeds.
DESCRIPTION:- A perennial Softly tomentose shrub, 2-3 meter high, Leaves dentate & ovate cordate Flowers-yellow, fruits schizocarpus caprule.
TASTE:-Sweet.
CHEMICAL CONSTITUENTS:-Plant Contains:-Gossypetin, Glucosides, Cyanidin, Rutinosides, Essenlial Oil; Root Contains: Fatty acids, Aspargin, Rafinose Stem & Leaves Contains Alkanol, Beta-Sito sterol, Vanillic acid, Caffeicacid, Fumaric acid, Fructose, Glucose, Galactose, Leucin, Histidine, Threonin, Serine, Glutamic acid and Aspartic acid. ACTIONS:-Analgesic, Laxative Expectorant, Diuretic, Carminative, Aphrodisiac, Diphoretic, Anthelmintic, febrifuge.
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USED-IN-Seeds: In piles, chronic cystitis, Gonorrhoea; Leaves: Locally applied to boiles, ulcers, fomation to painful parts; Decoction of Leaves: In Toothache, Gums; Given internally for bladder in flammation, Root: In fever & chest affections.
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