राहुल मेहता
रांची: खेल में रोहन को चोट लगने पर रोने लगा. उसके आठ वर्षीय दोस्त संदीप ने ताना मारा- क्या लड़कियों जैसा रो रहे हो ? मर्द को दर्द नहीं होता. क्या वास्तव में मर्द को दर्द नहीं होता या वे सामाजिक मानदंड के कारण दर्द व्यक्त नहीं करते ? आखिर संदीप ने यह सीखा कहां से ? आपने कभी सोचा है कि बच्चों पर संस्कृति और सामाजिक मानदंडों का क्या प्रभाव पड़ता है ? संस्कृति और सामाजिक मानदंड पालन-पोषण को कैसे प्रभावित करते हैं ?
बच्चे अपने परवरिश के अनुरूप ही बड़े होते हैं. वे सिर्फ वह नहीं सिखते जो हम उन्हें बताते हैं, अपितु वे जो देखते हैं, प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः अनुभव करते हैं वह भी सीखते हैं. बचपन की छोटी सी सीख “मदन बाजार जा, कमला झाड़ू लगा” कैसे लैंगिक असमानता के जड़ को सिंचित करती है. हम समझ ही नहीं पाते. केवल बेटी से पानी मांगते समय हम नहीं समझ पाते कि सेवा करना तो हम केवल बेटियों को ही सिखा रहें हैं, फिर बेटे के बड़े होने पर उनसे सेवा की उम्मीद क्यों करते हैं ? बेटी पराया धन होती है जैसी मानदंड भी हमारे परवरिश को प्रभावित करते हैं. हमारे अनेक व्यवहार हमारे अवचेतन मन के मर्यादा “हमें लगता है या लगा” के द्वारा निर्धारित होते हैं.
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रीति- रिवाज और सामाजिक मानदंड:
प्रत्येक समाज के अपने रीति-रिवाज और मानदंड होते हैं. ये मानदंड सकारात्मक या नकारात्मक हो सकते हैं. हर रीति रिवाज बुरे नहीं होते, सकारात्मक रीति रिवाज बच्चों के सर्वांगीण विकास में मददगार होते हैं जबकि नकारात्मक रिवाज हानि पहुंचाते हैं. कभी-कभी हम हानिकारक सामाजिक मानदंडों को लागू करते हैं क्योंकि हमें लगता है कि वे महत्वपूर्ण हैं, जैसे- बाल विवाह, बाल मजदूरी, बेटा- बेटी में भेदभाव, दिव्यांगता या जाति आधारित भेदभाव आदि. ऐसा इसलिए भी होता है कि हम परंपरा की धारा के साथ चलते चले जाते हैं, कभी इन मानदंडो के आधार अथवा कारणों पर गौर नहीं करते.
बेहतर पालन-पोषण के लिए सकारात्मक सामाजिक नियम अनिवार्य और महत्वपूर्ण हैं, अतः
• सकारात्मक रीति-रिवाजों और सामाजिक मानदंडों को अपनाएं जो बेहतर पालन-पोषण को बढ़ावा देते हैं.
• बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाले हानिकारक सामाजिक नियमों से बचें.
• समुदाय में दूसरों की सकारात्मक और नकारात्मक सामाजिक नियमों के बारे में समझ और जागरूकता बढ़ाएं.
• बच्चों को समाज के रीति-रिवाजों को मानने का विशेष कारण समझाएं.
• उन्हें दूसरों के विचारों, परम्पराओं, रीति-रिवाजों, धर्म का आदर करना सिखाएं.
रीति- रिवाज और सामाजिक मानदंड में परिवर्तन:
प्रगतिशील समाज में परिवर्तन आवश्यक है. हो सकता है वर्षों पूर्व कुछ रीति- रिवाज और सामाजिक मानदंड पूर्णतः या आंशिक रूप से उचित हों, पर परिवेश में बदलाव के कारण सामाजिक मर्यादा का आधार भी बदल जाता है. अतः समयानुसार व्यवहार में परिवर्तन भी अपरिहार्य हो जाता है. समावेशी समाज के लिए बच्चों में निम्नलिखित गलत और लैंगिक असमानता वाले रीति-रिवाजों और सामाजिक मानदंडों को बदलने का प्रयास करना चाहिए:
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• कार्यों का बंटवारा: देखभाल या घर का काम लड़कियों का होता है, बाहर का काम पुरुषों का.
• शिक्षा: लड़कियों को गृह विज्ञान, कला, मेडिकल आदि पढ़ना चाहिए, वे गणित में कमजोर होती हैं.
• पेशा : लड़कियों को शिक्षक, नर्स, डॉक्टर, आदि बनना चाहिए.
• पोशाक : गुलाबी या पीला रंग लड़कियों के लिए होता है, कोई पोशाक बुरा है.
• व्यवहार : लड़कियां भावुक, नरम, कमजोर, शर्मीली, मधुर होनी चाहिए.
अभिभावकों को बचपन से ही बच्चों को सिखाना चाहिए कि स्त्री और पुरुष विपरीत नहीं अपितु पूरक होते हैं. पुरुष के लिए मानदंड भी उपरोक्त मानदंडों के विपरीत नहीं होते. आपके द्वारा चुने गए सामाजिक मानदंड आपके बच्चे को सिखाते हैं कि क्या सही है और क्या गलत. अतः गलत सामाजिक मानदंडों को बदलने के लिए प्रयास करें.
परवरिश सीजन – 1
बच्चों की बेहतर पालन-पोषण और अभिभावकों की जिम्मेदारियां (परवरिश -1)
बेहतर पालन-पोषण के लिए सकारात्मक सामाजिक नियम अनिवार्य और महत्वपूर्ण हैं (परवरिश-2)
अभिभावक – बाल संवाद (परवरिश-5)
बच्चे दुर्व्यवहार क्यों करते हैं? (परवरिश-8)
मर्यादा निर्धारित करना, (परवरिश-9)
बच्चों को अनुशासित करने के सकारात्मक तरीके (परवरिश-10)
भावनाओं पर नियंत्रण (परवरिश-12)
बच्चों की चिंतन प्रक्रिया और व्यवहार (परवरिश-13)
टालमटोल (बाल शिथिलता) और सफलता (परवरिश-14)
नशापान: प्रयोग से लत तक (परवरिश-15)
छेड़-छाड़ निवारण में अभिभावकों की भूमिका (परवरिश-16)
बच्चों का प्रेरणास्रोत (परवरिश-17)
बच्चों के उद्वेग का प्रबंधन (परवरिश-18)
बच्चों में समानता का भाव विकसित करना (परवरिश-19)
स्थानीय पोषक खाद्य पदार्थ (परवरिश-21)
आपदा के समय बच्चों की परवरिश (परवरिश-22)
परवरिश सीजन – 2
विद्यालय के बाद का जीवन और अवसाद (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-01)
किशोरों की थकान और निंद्रा (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-02)
दोषारोपण बनाम समाधान (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-03)
किशोरों में आत्महत्या की प्रवृति (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-04)
पितृसत्ता और किशोरियों की परवरिश (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-05)
किशोर-किशोरियों में शारीरिक परिवर्तन (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-06)