प्रचलित नाम-
नीम
प्रयोज्य अंग-
पंचांग मूल की छाल, कांड की छाल, पत्र, पुष्प, फल (कच्चे तथा पके हुए)
स्वरूप- यह एक सघन विशाल 35 -45 फीट ऊँचा वृक्ष, जिसकी शाखाएँ तथा उप शाखाएँ फैली हुई होती है। शाखाओं के अंतभाग में संयुक्त पत्ते होते हैं। पत्रक विषम, नुकीले एवं दंतुर होते हैं। पुष्प छोटे-छोटे सफेद तथा सुगंध युक्त होते हैं।
स्वाद-
तिक्त ।
रासायनिक संगठन- इसमें मार्गोसिन (तिक्त) निम्बाडीन, गंधक, निम्बान, निम्बोस्टीरॉल, टैनिन, उत्पत्त तेल, राल, ग्लायकोसाईड्स, वसा अम्ल, गोंद, मुक्त एमिनो अम्ल, स्टार्च, शर्करा । इसके पत्रों में उपरोक्त तत्वों के अतिरिक्त क्वेरसेटिन, बीटा-सिटोस्टीरॉल
(
निम्बास्टीरॉल) तत्व पाये जाते हैं।
गुण-छाल तिक्त बल्य, ग्राही, अतिरेचक, शामक, कृमिघ्र, पत्र-शोथहर, व्रणरोपण, कृमिघ्न, यकृत उत्तेजक कुष्ठघ्न ।
उपयोग-इसकी
छाल का प्रयोग प्रतिश्या (जुकाम)
रक्तशर्करा प्रमाण नियंत्रण में, आमवात में, ज्वरहर, वेदनाहर, विषमज्वर, निद्राजनक, कैन्सर नाशक, कीटाणुनाशक । इसके पत्रों का प्रयोग खाज-खुजली दादर, फफूंदी रोग, पूतिरोधि। पंचांग का प्रयोग कण्डुरोग, व्रण श्वित्र, दाह, रक्तशोधन में लाभकारी।
तैल का प्रयोग आमवात, कुष्ठरोग, व्रण में लाभकारी । मलेरिया ज्वर में छाल का चूर्ण लाभकारी। श्वेत प्रदर में नीम की छाल तथा बबूल की छाल का क्वाथ लाभकारी।
पत्तों का प्रयोग त्वचा विकार, व्रण, कुष्ठरोग, कण्डु, छाजन, दूषित व्रण में लाभकारी। विचर्चिका में (व्हीपिंग एक्जीमा) पत्तों को पीसकर इस पर बाँध देते हैं, लाभ होता है। अर्श में इसके बीज को गुड़ के साथ खिलाते हैं। कुष्ठरोग में पंचांग का चूर्ण या क्वाथ का स्नान, सेवन तथा लेप से लाभ। प्रतिदिन नीम के एक सौ पत्रों का चूर्ण जल के साथ यदि छ: मास तक लगातार सेवन किया जाये, तो कितना भी जीर्ण कुष्ठरोग हो मिट जाता है। या नीम के पत्र एवं हरड़ का चूर्ण सेवन करने से एक मास तक सब तरह के कुष्ठ रोग मिट जाता है। दाह ज्वर में नीम के कोमल पत्रों को थोड़ा कूट कर, जल में इनको अच्छी तरह मसलने से इसके ऊपर झाग आयेगी, इस झाग को लेकर इसमें मधु मिलाकर सेवन करने से वमन होगा तथा दाह शांत होगा।
कफ युक्त तृषा में नीम के पत्रों के रस को गरम कर सेवन से वमन होगा, जिससे लाभ होता है। व्रण शोधन के लिये इसके मंत्रों को पीसकर, इसमें थोड़ा मधु मिलाकर व्रण पर इसका लेप करने से लाभ होता है। कामला इसके पत्रों के रस में मधु मिलाकर सेवन से लाभ होता है नेत्र रोगों (नेत्र शोथ, खुजली एवं दर्द) में इसके पत्रों को सोंठ के साथ बारीक पीसकर, इसमें थोड़ा सैंधव लवण मिलाकर, गरम कर इसकी थप्पे पलकों पर रखने से लाभ होता है। कृमिरोग में इसके पत्रों के रस में मधु मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है। शारीरिक स्थूलता एवं मधुमेह रोग में नीम का तेल दस बूंद कैप्स्यूल में भरकर प्रतिदिन सेवन करना चाहिए, प्रतिदिन दस बूंद बढ़ाना चाहिए, जब तक वमन या जी मचलाये तब तक यह एक अद्भुत प्रयोग है।
प्रतिदिन नीम की दातुन करने से दाँतों में सड़न, दुर्गन्ध एवं कीटाणु नहीं रहते। सिर के बालों में रूसी हुई हो, तो नीम के पत्रों का काढ़ा बनाकर सिर धोने से रूसी का नाश होता है। संधिशोथ एवं आमवात तथा गठिया रोग में नीम के पत्रों का रस तथा क्वाथ का सेवन करने से अच्छा लाभ होता है।
सफेद बाल काले करने के लिए नीम के तेल की कुछ बूँदें नासिका छिद्रों में टपकाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं इस प्रकार का कथन शास्त्रकारों का है। | मात्रा-पत्र रस- 10 -20 मि.ली. प्रतिदिन । छाल का चूर्ण-दो ग्राम। तेल-5 -10 बूँद । । पत्र का चूर्ण-2 -5 ग्राम ।
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Syn. Azadirachta indica. A. Juss. Melia azadirachta Linn. MELIACEAE
ENGLISH NAME:- Margosa tree (Nimb tree) PARTS-USED:-Whole plant, Root bark, stem bark, Leaves, Flowers, Fruits
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(Young & Ripe)
DESCRIPTION:- A large tree, impari pinnate compound leaves leaf-lets 9-15 lanceolate acuminate oblique, flowers creamish-white and aromatic, drupe oblong 1-2 cm, sweet pulpy
when ripe. TASTE:-Bitter.
CHEMICAL CONSTITUENTS- Plant Contains:- Margocin (Bitter), Nimbadin, Sulphur,
Nimban, Nimbosterol, Tannin, Essential oil, Resin, Glycosides, Fatty acids, Gum, Free
Aminoacids, Starch Sugars. Leaves Contain:-Quercetin, Beta-sito sterol (Nimbasterol).
ACTIONS:-Bark: Bitter, Tonic, Astringent, Purgative, Demulcent, Anthelmintic. Leaves: Anti-inflammatory, Wound healer, Anthelmintic, Liver stimulant, Anti leprotic. USED IN:- Bark: Rhinitis affections, Hypoglycaemic, Rheumatism, Antipyretic, Analgesic, Malarial fever. Seadtive, Anti ulcer, Anti bacterial; Leaves are useful in Eczema, Ringworm, Fungal affections, Antiseptic; Whole Plant: useful in Scabies, Ulcer, Leucoderma, inflammation, Blood purification, Oil: is used in Rheumatism, Leprosy & Ulcer.
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स्रोत : आयुर्वेद के प्राण वनौषधि विज्ञान की किताब से
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